Category: सतचिदानंद भागवत ‘असर’
स्वप्न-गीत प्रात: का स्वप्न आज सत्य सा प्रतीत हुआ, नयन खुले, सपन टूट क्षण में अतीत हुआ,…………….. यामिनी को साथ पाके, चन्द्र-आभ प्रखर थी, दबे पाँव आईं तुम, नीरवता मुखर थी, …
रहगुज़र जीवन की रहगुज़र पे कितनी दूर चला आया हूँ बस्तियां कितनी, शहर , कितने छोड़ आया हूँ,1 ज़मीं से अर्श तक, छाई हुई है धुंद ही धुंद , मैं अपने …
जेहन में अब कोई ख्वाबो-खयालात नहीं, इन अंधेरों में रौशन कोई आफताब नहीं, 1 रूह अटकी हुई सी लगती एक पिंजरे में जिस्म ठंडा है, साँसों में कोई ताब …