Category: ऋतुराज
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23/10/2016
अज्ञात कवि, अज्ञेय, अटल बिहारी वाजपेयी, अभिषेक उपाध्याय, ऋतुराज, ओमेन्द्र शुक्ला, धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ, नवल पाल प्रभाकर, राम केश मिश्र, शर्मन, शिशिर कुमार गोयल, सजन कुमार मुरारका
“आरक्षण की आग मे जल रहा हैं हिन्दुस्तान”,शिक्षा नौकरी पाने को बिक रहे हैं कई मकान,ठोकरे मिलती हैं यहा मिलता नही हैं ग्यान…. “आरक्षण की आग मे जल रहा …
कभी इतनी धनवान मत बनना कि लूट ली जाओ सस्ते स्कर्ट की प्रकट भव्यता के कारण हांग्जो की गुड़िया के पीछे वह आया होगा चुपचाप बाईं जेब से केवल …
कितना प्रामाणिक था उसका दुख लड़की को कहते वक़्त जिसे मानो उसने अपनी अंतिम पूंजी भी दे दी लड़की अभी सयानी थी इतनी भोली सरल कि उसे सुख का …
आदमी के बनाए हुए दर्शन में दिपदिपाते हैं सर्वशक्तिमान उनकी साँवली बड़ी आँखों में कुछ प्रेम, कुछ उदारता, कुछ गर्वीलापन है भव्य वह भी कम नही है जो इंजीनियर …
अचानक सब कुछ हिलता हुआ थम गया है भव्य अश्वमेघ के संस्कार में घोड़ा ही बैठ गया पसरकर अब कहीं जाने से क्या लाभ ? तुम धरती स्वीकार करते हो …
सारे रहस्य का उद्घाटन हो चुका और तुम में अब भी उतनी ही तीव्र वेदना है आनंद के अंतिम उत्कर्ष की खोज के समय की वेदना असफल चेतना के …
कितना प्रामाणिक था उसका दुख लड़की को दान में देते वक़्त जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो लड़की अभी सयानी नहीं थी अभी इतनी भोली सरल थी कि उसे …
द्वार के भीतर द्वार द्वार और द्वार और सबके अंत में एक नन्हीं मछली जिसे हवा की ज़रूरत है प्रत्येक द्वार में अकेलापन भरा है प्रत्येक द्वार में प्रेम …