Category: आरसी प्रसाद सिंह
दिल हमारा लापता है शाम से कर रहा है क्या ? गया किस काम से दर्द ले कर दिल हमारा ले लिया हो गए दोनों बड़े अंजाम से लाश में …
हो गई हैं चार आँखें यार से लड़ गई तलवार क्यों तलवार से आप क्या हैं ? आपको मालूम क्या ? पूछिये अपने किसी बीमार से प्यार का कुछ और ही …
आपके इस शहर में गुज़ारा नहीं अजनबी को कहीं पर सहारा नहीं बह गया मैं अगर, तो बुरा क्या हुआ ? खींच लेती किसे तेज़ धारा नहीं आरज़ू में जनम …
आया बन जग में प्रातः रविः मैं भारत-भाग्य विधाता कवि ! तोड़ता अलस जग-जाल जटिल; सुकुमार, स्नेह-धारा-उर्म्मिल ! मैं पुरुष-पुरातन, प्रेम-दान; चिर-कविर्मनीषी, सृष्टि-प्रान !! बरसाती लौह-लेखनी पवि; मैं विद्रोही इठलाता कवि ! सुर-तरु-सा …
कैसे अलि, भाया यह उपवन ? वैभव-समाधि पर ऋतुपति की यह पतझड़ का सैकत-नर्तन ! तू नंदन-वन की मोहमयी सुंदरी परी शोभाशाली; तेरी चितवन से किस प्रकार मदिराकुल होता वनमाली ! रोता …
स्वागत, मुदमंगलमय सहर्ष हे नूतन ऋतु, हे नवल वर्ष ! बिखरे चरणों पर मुक्तमाल, यह शरत्सुंदरी की प्रसन्न दल-दल पर दूर्वादल-प्रवाल ! आनन श्री छायापथ प्रपन्न फैला जो नव रवि-रश्मि-जाल, आली …
चेतना के हर शिखर पर हो रहा आरोह मेरा। अब न झंझावात है वह अब न वह विद्रोह मेरा। भूल जाने दो उन्हें, जो भूल जाते हैं किसी को। …
तब कौन मौन हो रहता है? जब पानी सर से बहता है। चुप रहना नहीं सुहाता है, कुछ कहना ही पड़ जाता है। व्यंग्यों के चुभते बाणों को कब …
चलता है, तो चल आँधी-सा ; बढता जा आगे तू! जलना है, तो जल फूसों-सा ; जीवन में करता धू-धू! क्षणभर ही आँधी रहती है ; आग फूस की भी क्षणभर! किन्तु …
पीपल की ऊँची डाली पर बैठी चिड़िया गाती है । तुम्हें ज्ञात अपनी बोली में क्या संदेश सुनाती है ? चिड़िया बैठी प्रेम-प्रीति की रीति हमें सिखलाती है । वह …
तुम्हारी प्रेम-वीणा का अछूता तार मैं भी हूँ मुझे क्यों भूलते वादक विकल झंकार मैं भी हूँ मुझे क्या स्थान-जीवन देवता होगा न चरणों में तुम्हारे द्वार पर विस्मृत …
शक्ति ऐसी है नहीं संसार में कोई कहीं पर, जो हमारे देश की राष्ट्रीयता को अस्त कर दे । ध्वान्त कोई है नहीं आकाश में ऐसा विरोधी, जो हमारी …
कलकत्ते से दमदम आए बाबू जी के हमदम आए हम वर्षा में झमझम आए बर्फी, पेड़े, चमचम लाए। खाते पीते पहुँचे पटना पूछो मत पटना की घटना पथ पर …
यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है । सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है । कब फूटा गिरि के अंतर से ? …
मैंने एक किरण माँगी थी, तूने तो दिनमान दे दिया। चकाचौंध से भरी चमक का जादू तड़ित-समान दे दिया। मेरे नयन सहेंगे कैसे यह अमिताभा, ऐसी ज्वाला? मरुमाया की …
चाँद को देखो चकोरी के नयन से माप चाहे जो धरा की हो गगन से। मेघ के हर ताल पर नव नृत्य करता राग जो मल्हार अम्बर में उमड़ता …