Category: रवीन्द्र प्रभात
मत पूछना कि क्यों मैं, दर्द में उबला हुआ कोई गीत मांगता हूँ। हे देश, तुझसे आज मैं कुछ अगजला सौगात अतिरिक्त मांगता हूँ। . लिख रहा हैं आज …
ये तन्हा सा सफ़र है और तुम हो मेरा जख्मे-जिगर है और तुम हो . बड़ा गमनाक तूफान आज दिल में है- जेहन भी मुंतसिर है और तुम हो …
हमारे साथ- पहली बार स्तब्ध नहीं हुयी है हवाएँ पहली बार भावुक नहीं हुआ है पूरा देश पहली बार विवश नहीं दिखा है आम-आदमी पहली बार- हमारे चलने-फिरने-बोलने पर …
वह चुटकियों में हल निकाल देता है चालाक है, कीचड़ उछाल देता है । घुप्प अंधेरा हर तरफ कायम रहे – आवरण सूरज पे डाल देता है । बात …
गजल जज़्बात पर हावी यकीनन धाक हो गयी है दिल्ली की सल्तनत बड़ी नापाक हो गयी है । नुमाइंदे आवाम के बसते हैं जिस शहर में- इज्जत-हिफाजत उस शहर …
“अपने हक़ और हकूक की हिफाजत में – क्यों भूल गयी मजहबी कायदे-कानून ? कच्ची उम्र मे- खिलौनों और गुड़ियों की ज़िद करने के बजाय चटर पटर मुंहफट क्यों …
जब – बीमार अस्पताल की बीमार खाट पर पडी – पडी मेरी बूढ़ी बीमार माँ खांस रही थी बेतहाशा तब महसूस रहा था मैं कि, कैसे – मौत से …
बहुत पहले- लिखे जाते थे मौसमो के गीत जब रची जाती थी प्रणय कीकथाऔर – कविगण करते थे देश-काल की घटनाओं पर चर्चा तब कविताओं मेंढका होता था युवतियों का …
जब बीमार होता कोई सेठ जरूरत महसूस नही होती ओझा- गुणी की नीम-हकीम से भी ठीक नही होते सेठ दुआएं नही भाती उसे अपने मजदूरों की दिए जाते कोरामीन / …
जहां समाप्ति की नियति है वहां हर कर्म क्षणिक और अपने लिए गढ़ा गया हर अभिप्राय भ्रम होता है इसलिए- शुरू की जानी चाहिए मृत्यु से जीवन की बात …
ग़ज़ल आईये हम मुल्क में सोच यह विकसित करें एक व्यक्ति एक को हर रोज हीं शिक्षित करे । . नौजवां के हाथ में केवल नहीं हो डिग्रियां- नई …
(ग़ज़ल ) पटाखे फोड़कर क्यूं नोट जलाएं बाबू जी मिटटी के दीयों से घर सजाएं बाबू जी । . हमारे गाँव की पगडंडियाँ मासूम है- इसे न राजपथ से …
(ग़ज़ल ) बड़ा ज़िद्दी बड़ा निडर बड़ा खुद्दार है वह इसलिए शायद अलग-थलग इसपार है वह । रात को दिन और दिन को रात कैसे कहे- यार जब राजनेता …
खामोशियों के आलिंगन में आबद्ध वह गुब्बारा सुबह से तैरता हुआ अचानक फूट पड़ता है, तब – जब हमारे आँगन में उतरता है रात का अन्धेरा चुपके से । …
दोहे पहले ओला गिर गया, गडमड पैदावार ! कैसी गर्मी बेशरम, आयी है इसबार !! . झुरमुट-झुरमुट झांकता, रात में नन्हा चाँद ! पर ज्यों-ज्यों दिन चढ़ …
ग़ज़ल बेटियाँ , बेटियाँ , बेटियाँ बन रही तल्खियाँ , बेटियाँ । सुन के अभ्यस्त होती रही, रात – दिन गलियाँ , बेटियाँ । सच तो ये है …
कविता जब झूमें घटा घनघोर और टूटकर बरस जाये तुम लौट आना अपने गांव अलाप लेते हुये धानरोपनी गीतों का कि थ्रेसर – ट्रेक्टर के पीछे खडे बैल तुम्हारा …
कविता आज फिर- धर्ममद का अग्निकांड दरका गया छाती और लोगों की फूहड़ गालियों से निस्तब्ध हो गयी परिस्थितियाँ ! . आज फिर – उद्घाटित हुई सदाचार की नयी …
ग़ज़ल अनुभवों का फ़िर नही कोई बहाना चाहिए , सोच जिसमें है नई वह आजमाना चाहिए । . थक गए हैं जो सफर में दीजिये आराम उनको- एक इंजन …
ग़ज़ल कांच के जज्बात, हिम्मत कांच की यार ये कैसी है इज्जत कांच की ? . पालते हैं खोखले आदर्श हम- माँगते हैं लोग मन्नत कांच की . पत्थरों …
ग़ज़ल खेलिए ज़ज़्बात से मत खौफ़ तारी कीजिये मुस्करा के वेबजह ना मेहरबानी कीजिये . छेडिये इक जंग ग़ुरबत को मिटाने के लिए घोषणा मत खोखली या मुँह जबानी कीजिये . कौन है …