Category: रवि श्रीवास्तव
हार रहा हूँ मैंकवि लगातार विपल होने पर उदास होकर कहता हैहार रहा हूँ मैंटूट रहा हूँ मैंपिघल रहा हूँ मैंजाने कितने दिलों सेनिकल रहा हूँ मैं।हर बार है …
कहीं तुम परी तो नहींसुंदर रूप, नयन छोटे सेचेहरे पर लाली है छायी,जुल्फों का यूं, हवा में उड़नाजैसे काली घटा है आई।ओठों पर मुस्कान है ऐसे जैसे फैली हो …
थोड़ा सा विचलित हूँ मैं, थोड़ा सा उदास हूँ।दूर भले मैं तुझसे रहूँ, लेकिन दिल के पास हूँ।याद तेरी जब जब आती है, दिल मेरा बस रोता है।खड़ा रहूँ …
मैं लोकतंत्र हूँ।निश्छल, मजबूत और सूझबूझ का सागर हूँ।सारा ज्ञान मेरे अंदर है विराजमान है,फिर भी न जाने प्राणी क्यों अज्ञान है?हमेशा की तरह फिर से मुझे संकट में …
सुन प्रिये तूने, क्यों ऐसा किया, क्यों प्यार हमारा, भुला दिया।हर बार ,भरोसा दे देकर, हर बार ,भरोसा तोड़ा हैदिल मेरा ऐसे, तड़प रहा,जैसे तेल में, तल रहा पकौड़ा …
तेरी आँखों में कहीं, खो गए हैंजागती आँखों में, सो गए हैं।देखकर तुझको मुझे, कुछ ऐसा लगा।बात दिल की तुझसे, मैं कह न सका।आसमां से जैसे ,कोई उतरी हो …
आख़िर खुदकुशी करते हैं क्यों ? जिंदगी जीने से डरते हैं क्यों ? फंदे पर लटककर झूले जीवन है अनमोल ये भूले। अपनों को देकर तो आंसू, छोड़ दिए …
उन्होने तमन्नाओं को पूरा कर लिया, मुझे नही है उनसे कोई भी शिकवा। किसी के वादों से बधां मजबूर हूं, उन्हें लगता है शायद कमजोर हूं। बड़ो का आदर, …
लहू तो एक रंग है आपस में एक दूसरे से, हो रही क्यों जंग है ? लहू तो एक रंग है, लहू तो एक रंग है। हर तरफ तो …
मेरा क़ातिल अब फिर रातों को, सोना मुश्किल हो गया, दिल के जख्मों को, फिर कोई कुरो गया। आंख बंद करते ही, एक तश्वीर नज़र आती है, जिधर भी …
रिक्शा चालक पता नहीं क्यों लोग मुझे, घृणा की नज़र से देखते हैं ग़ाली की बौछार के साथ हम पर हांथ सेकते हैं ताने सबके मुझको सुनना पुलिस का …
तूफानों से तेज चलूं मैं न ही थकूं न ही रूकूं मैं । सब कुछ मेरे ही अधीन है, मेरी बातें भिन्न-भिन्न हैं। गुजर गया वापस न आऊं, सबक …
हर दर्द को छुपाया है यादों की उनकी मैनें सीने से लगाया है, दिल के अंदर मैनें हर दर्द को छुपाया है। मेरी हंसी से लगता है उन्हें मैं …
कैसा है ये समाज, क्या है इसकी परिभाषा, हर तरफ बढ़ गया अपराध, बन रहा खून का प्यासा। मर्डर चोरी बलात्कार, बन गया है इसका खेल, जो नही खाता …
एक हफ्ते की मोहब्बत का ये असर था, जमाने से क्या, मैं खुद से बेखबर था। शुरू हो गया था फिर, इशारों का काम महफिल में गूंजता था, उनका …
क्या कसूर था मेरा, गोलियों से भून दिया, शिक्षा के मंदिर में बेगुनाहों का खून किया। सजाकर भेजा था, लाडले को अपने टूट गए उनके, जो देखे थे सपने। …