Category: राम निवास बांयला
अभिषेक करें जन वाणी का अभिषेक करें जन वाणी का नागरी का,दीव्यागीर्वाणी का | ओंकार जन्मा,संस्कृत सृष्टा जग वन्दिनी, देव-नन्दिनी खलिहान-खनक,मात वाणी का । अभिषेक करें जन वाणी का …
टेरने आज़ादी टेरने आज़ादी कीर कंकालों को पिंजरों से टांग दिया खुली हवा में बिजुकों की जगह हाथ में थमा दी मशालें कि बने रहो मशालची दिखाते रहो रास्ता …
रिश्ते मेरे रिश्ते रिसते-रिसते अजाने पैरों पर खड़े हो गए अब जब चाहें जहां चाहें चल पड़ते है अपने आप | मैं थक-हार कर रहा इंतजार उनके थक जाने …
फकीरी राग उस दिन – जब – आसमानी आग प्रचण्ड हवा निगल नव-निधियों संग उगी थी धरा जल में उस दिन – जब – दसवीं सिद्धि ने बनाया था …
अनुभव देखो जननी ! जीत लाया मैं जीत लाया एक सलौना मीत लाया गाण्डीव प्रत्यंचा से मत्स्य चक्षु खींच लाया | बधाई ! पुत्र बधाई ! उन्मन कुंती हर्षाई …
खाली हाथ मिट्टी में जब मिलने लगी मिट्टी तब समझ आया वो तो है ’मिट्टी’ अब क्या ? समय सारा बीत गया जो था सब रीत गया खाली हाथ …
किसान शीत, ताप बरखा आघात जोत हड्डि यां निचोड़ आंत बो कर सपने खुशी उगाता नि:शेष उदर निरीह अन्नदाता सृष्टि का जीवट आदर्श, वरदान निराय, निरापद कृश किसान ।
गज़ल उर उद्वेलन में पलकों से झरे हया लफ़्ज़ जो जा अटके थे ओष्ठ-प्रकोष्ठ संवेदी हूक संग आहिस्ता-आहिस्ता मेरे दिल में उतरे बांछें खिलीं और काफ़िए बन गए जो …
उर उद्वेलन में पलकों से झरे हया लफ़्ज़ जो जा अटके थे ओष्ठ-प्रकोष्ठ संवेदी हूक संग आहिस्ता-आहिस्ता मेरे दिल में उतरे बांछें खिलीं और काफ़िए बन गए जो गुनगुनाए …
सीढी सीढी सिर्फ सीढी है साध्य नहीं, साधन है चेतना का चेतन का, जो साधक को सामर्थ्यानुसार सयास ले जाती है – ऊपर …….. नीचे भी ।
उतारने सूरज को आंगन नंगे पांव, सूखे बदन हाथ औज़ार, कांधे जिम्मेदारी नवल स्वप्न, सस्मित वदन धरा – विश्वकर्मा आदतन आज भी लामबद्ध, बनाने सीढ़ी आसमां की चोखट तक, …
प्रकाश स्तंभ का होना अधिकारी -अनाधिकारी जलयानों का दिग्दर्शक बन तट पर खड़ा ’स्थूल गन्तव्य’ तट का आभास-’प्रकाश स्तंभ’ । मगर तट पाने झंझा की नाव को ही जूझना-झेलना …
अंगद का पांव चांद फ़तह मंगल की सवारी जल-थल-नभ दोहन साधन-संसाधन योजना, तकनीक विकास ! विकास की होड़ ! मगर- आंगन की खुशी चूल्हे की आग खलिहान की …
वे वे रचते रहे छन्द, प्रबन्ध मुझ, निर्बल की पीड़ा-प्रताड़ना पर पाते रहे प्रसिद्धि-पुरस्कार । भूल मुझे मनाते रहे जश्न । ताकि मिलते रहें- विषय, प्रतीक भावी …
फ़रमान वन-ग्वालों का वर्चस्व – अहं हुंकार ! फ़रमान – ’यहां वर्जित हैं – शांति प्रयास ।’ अन्यथा गाड़ दी जाएंगी कील । सुन वर्जना बुद्ध मुस्कराए शांति …
बदलाव अबोध-मासूम निश्छल-नव सृष्टा खेल-खेल में घरोंदे बनाता,सृजन करता । अज्ञात भाव से टहनी रोपता हरियाली हित पानी देता,रखवाली करता । गुड्डे की शादी करता शहनाई बजाता लकड़ी की …
दामन का दाग मैं नहीं धोना चहता मेरे दामन का दाग नहीं तो उजास से कालिख का दिल टूट जायगा । दाग धोकर दाग लगाने से,फिर धोने …
मैं क्यों अबला ? मैं क्यों अबला ? मैं तो सबला नार, मेरी ही पीठ पर सब कंधों का भार। गोबर, कण्डे, मवेशी, घास चूल्हा-चाकी, जठर-आस सुहाग, व्रत, …
मेरे १०१ हाइकू १ घास रोदन दुबारा अंकुरण जिजिविशा है । २ ताकते मोर आच्छादित गगन कब वर्षा हो। ३ बनाता घर मिट्टी द्वारा अबोध एक सृजन। ४ उन्हें …
नाम की तख्ती मैं था निर्मल कोमल रंगहीन गंधहीन निरापद निर्भय बेनाम मदहीन क्या था? मालूम नहीं किन्तु मैं ’मैं’ नहीं था। आँखें खुलीं ही थीं कि कई रंगों …
रणधीर तेरी शहादत पर निकल पडे़ आँसू आज। ऊँचे मंडप, तोरण द्वार तेरा जय-घोष पर मन है व्याकुल आज। रणधीर तेरी शहादत पर निकल पड़े हैं आँसू आज। तेरा …
ढोंग बरस कर हिमालय में करता है ढोंग पूर्व प्लावित पर लाता है बाढ दिखाता है सामर्थ्य ? है हिम्मत तो ए बादल ! बिखर रेगिस्तान में बहा …
मैं जब मैं ’मैं’ नहीं होता तो होता हूँ- एक लकीर, बन्द आँखों चलना होता है सब करना होता है अगम अनुरूप। जब मैं ’मैं’ होता हूँ …
मजदूरन माँ भट्टी ज्यों धधकती भू झुलसने वाली असह्य लू । योवन विषाद तर मातृत्व अवसाद सभर यह अस्तित्व । छलकता वक्ष वतसल्य ममता मूरत मञ्जु लावण्य । …
भट्टी ज्यों धधकती भू झुलसने वाली असह्य लू । योवन विषाद तर मातृत्व अवसाद सभर यह अस्तित्व । छलकता वक्ष वतसल्य ममता मूरत मञ्जु लावण्य । टोकरी थी उसके …