Category: रमेश तैलंग
इकड़ी-तिकड़ी, तिकड़म ता । हुआ सबेरा, अब उठ जा । इकड़ी-तिकड़ी तिकड़म-ता । दाँत माँज कर, रोज़ नहा । इकड़ी-तिकड़ी तिकड़म-ता । मान बड़ों का, सदा कहा ।
हरी घास का, बिछा गलीचा । सुन्दर-सुन्दर सजा बग़ीचा । ठंडी-ठंडी हवा चल रही, फूलों पर तितली मचल रही, यहाँ बैठकर, मन बहलाओ । जैसे पंछी, गाते, गाओ ।
में…में बकरी मटक-मटक चली तो रस्ता गई भटक । ब-ब-बचाओ ! गले में उसके- बोली निकली अटक-अटक । ०० टिक-टिक घोड़ा टिम्मक-टिम । चलता डिम्मक-डिम्मक डिम । जिसने छोड़ी ज़रा …
न तो बंदूक की, न ही बारूद की, कल की दुनिया हमको चाहिए नए रंगरूप की। जिसमें न पाठ पढ़ाया जाए नफ़रत का, जिसमें न राज चलाया जाए दहशत …
नील कमल फूले फिर ताल में राजा जी एक कमल मेरे लिए लाना जी एक कमल मेरे लिए. एक पंखुरी में भर चांदनी दान करूंगी एक पंखुरी में भर …
छोटों के नमस्कार लीजो, नानी! हमको जी भर आशीर्वाद दीजो । आएँगे जब हम ननिहाल में, पूछेंगे-‘तुम हो किस हाल में?’ अपने सब हाल-चाल दीजो । नानी! हमको जी …
हल्दी दहके, धनिया महके, अम्माँ की रसोई में । आन बिराजे हैं पंचायत में राई और जीरा । पता चले न यहाँ किसी को राजा कौन फकीरा । सिंहासन …
ईंट पत्थर पर टिकी आराधना कमजोर होती है. जो दिखावे के लिए हो प्रार्थना वो शोर होती है. भीड़ का चेहरा नहीं होता कोई भी भीड़ के केवल हज़ारों …
धान पराया हुआ, हल्दी परायी, चढ़ गयी नीलामी पर अमराई ऐसी विदेसिया ने करी चतुराई. अपने रहे न घने नीम के साए गमलों में कांटे ही कांटे उगाये, पछुवा …
चमके चंदा जहाँ तारे हज़ार, पवनिया बजाती जहाँ पर सितार, कौन देश माँ, बादलों के पार ? बिखराता कौन सुबह होते ही रंग ? बूँदों की सुनता है कौन जल-तरंग ? रोज़-रोज़ …