इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं, हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं। कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं। मगर इस पर भी …
हैफ हम जिसपे की तैयार थे मर जाने को जीते जी हमने छुड़ाया उसी कशाने को क्या ना था और बहाना कोई तडपाने को आसमां क्या यही बाकी था …
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है । करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत, देखता हूँ मैं जिसे वो चुप …