Category: राजेश ‘राज’
कब पालना छूट जाता है, कब बचपन गुजर जाता है कब घुटनों के बल चलते चलते, कंधे से कंधा मिल जाता है वक्त देखते देखते न जाने कैसे इतना …
मुश्किल हो फिर भी अपने ग़म छुपाते रहिये…. अपनी आँखों में हसीन ख्वाब सजाते रहिये…. वक्त का क्या भरोसा, न जाने कब बदल जाये…. बेवजह ही सही पर आप …
जो किसी ने कहा नहीं, मैं वो आवाज सुनता रहा जो पूरे हो नहीं सके, मैं वो ख्वाब बुनता रहा जिंदगी में कहाँ जाना था और कहाँ पहुँच गये …
जीवन की दौड़ में हर कोई परेशान सा क्यूँ है भीड़ बहुत है पर मंजर इतना सुनसान सा क्यूँ है अपनी उलझनों का सबब जानते तो हैं सब पर …
कहते हैं आजादी आधी रात को मिली थी पर सुबह के सूरज का इंतजार अभी बाकी है….. … सुना है खून बहाया था नौजवानों ने हर लहू की बूँद …
जीत जाओ तो कोई अपना पीछे छूट जाता है और हारो तो जमाना ही आगे निकल जाता है कुछ अजीब सा दस्तूर है जिन्दगी का लम्हें कटते नहीं पर …
करीब मंजिल के भी क्यूँ ये दूरी रह जाती है… सुनसान सी राहों पर भी कुछ मजबूरी रह जाती है… निगाहों में सारा जमाना समेटे हुए चलते हैं हम… …
शिकायत तुमसे और तुम से ही तुम्हारी शिकायत करता हूँ …. मोहब्बत भी तुमसे, शिकवा भी तुम ही से करता हूँ …. कई फसाने हैं इस दिल में तुम्हें …
बिना रौशनी के रातें का सफर अब कटता नहीं बिना मंजिल के ये दिन अब गुजरता नहीं शाम भी तो अपने आगोश में गम ही लेकर आती है दिल …
अपनी भी कुछ ख्वाइशें, कुछ सपने थे, कुछ तस्वीरों में हमें भी रंग भरने थे, न जाने क्यूँ, यूँ ही डरता गया, मैं रुका रहा और वक्त आगे चलता …