Category: आर. चेतनक्रांति
कविता लिखने के सौ कारण थे और छपने का एक भी नहीं फिर भी मैं छपा -एक भाषा के डूबते टापू के सारे बाशिन्दे समुद्र के सारे सीप, सारे …
एक मर्द हँसा हँसा वह छत पर खड़ा होकर छाती से बनियान हटाकर फिर उसने एक टाँग निकाली और उसे मुंडेर पर रखकर फिर हँसा हँसा एक मर्द मुट्ठियों …
हम क्रांतिकारी नहीं थे हम सिर्फ अस्थिर थे और इस अस्थिरता में कई बार कुछ नाजुक मौक़ों पर जो हमें कहीं से कहीं पहुंचा सकते थे अराजक हो जाते …
आसमान काला पड़ रहा था धरती नीली जब हमारे मालिक ने अपने मासिक दौरे पर पहला क़दम दफ़्तर में रखा दफ़्तर में बहुत सारी कोटरें थीं शुरू में आदमी …
खुशी खत्म ही नहीं होती कुछ ऐसी मस्ती छाई है कि रात-भर नींद नहीं आई है फिर भी सुबह चकाचक है हिृतिक रौशन प्यारा-प्यारा मुन्नी की आँखों का तारा …
वे तो बढ़े ही चले जा रहे थे आगे, और आगे और आगे के बारे में उनकी राय तय हो चुकी थी कि जहाँ पीछेवालों की इच्छाएँ जाकर पसर …
श्रद्धा का सूर्य शिखर पर था सबसे ठंडे मौसम में भी जो गर्माती रहती थी भीतर ही भीतर चपल चापलूसी की चलायमान चांदी गुफ़ा में दहकती थी जो सतत, …
मैंने जब साधुता से कहा–विदा और घूमकर दुर्जनता की बाँह गही वह कोई आम-सा दिन था खूब सारी ख़ूबियों की ख़ूब सारी गलियों में आवाजाही तेज़ थी मिन्दर के …
वे तुम्हें मज़बूर करेंगे कि तुम्हारा भी एक रूप हो निश्चित कि तुम्हारा भी हो एक दावा कि हो तुम्हारा भी एक वादा कि तुम्हारा भी एक स्टैण्ड हो …
सर्कस जैसा कुछ था चमत्कार की चमकार में रंग-बिरंगा `हय-हय-हैरानी´ में नंगा एक बौने के ऊपर संरक्षणार्थ या हायरार्की के सुप्रसिद्ध कानून के हितार्थ और, इसलिए भी कि ब्रह्मांड …
सभी जाग्रत जीव जिनकी रगों के घोड़े मांद पर बंधे ध्यानरत खाते होंगे सन्तुलित-पुष्ट घास विचार करेंगे उन सभी पशुओं की नियति पर जिनके खुर नहीं आते उनके वश …