Category: प्रशान्त तिवारी
चिड़ियों का गण हर नयी सुबह दाने को चुगने चलता है,हर पथिक अथक फिर से अपनी मंजिल पर आगे बढ़ता है। हर पग पर बधाओं के संकट रह-रह कर …
क्यूँ शांत रहा इतने दिन मैंइतना भी ऐसा विचरना क्या था ,टाल दिया होता मत कोपतझढ़ में बात बिगड़ना ही था।जो बोल रहे वो बोलेंगेक्या सोच रहे ये क्यूँ …
सूरज ढलने से पहले जब घोर अंधेरा होता है,भय लगता है मन में और बादल सा उमड़ जाता है।दूर दृष्टी से देखा जिसको नयनों ने पुलकित होकर,पास पहुँचकर देखा …
आज जले न जाने कितने रावण धूं-धूं कर केऔर सभी ने मांगी खुशियां सदा जो उनपे बरसे,क्या किसी ने फूंका अपने अंदर के रावण को,जो घूम रहे हैं बाहर …
आरक्षण ने तंज कसा है प्रतिभाओं के पंख कुतर कर, रोजी रोटी मिलना था पर हाथ धरे बैठे है घर पर, अन्य सदन पैदा जो होता कम से कम …