Category: प्रज्ञा श्रीवास्तव
जीवन एक गणित है बनाना है इसको यदि सुंदर तो इसमे मित्रों को जोड़ो दुश्मनों को घटाओ दुखों का करो भाग सुखों का गुणा करो समीकरण बनाओ अच्छे कर्मों …
लिखने वाले ने लिखा मुझे ये सोचकर मुझको भी कोई तो गुनगुनाएगा मंच की मल्लिका मैं बन ना सकी कदरदान मुझको कोई मिल ना सका तनहाईयों में जीती रही …
लेकर काफिला चला था वतन की शान में तू लड़ने अब अकेला ही चला है जाँ लुटाके अपनी दुश्मनों ने धोखे से शीश तेरा हर लिया खबर नही है …
गरम समोसे हमने परोसे बोले भईया खालो मुँह मे हमरे छाले हैं इनको दूर हटा लो इनको दूर हटा लो वरना हमसे रहा ना जाएगा फिर कितनी भी हो …
तुमने काटा है बहुत मुझे मैं कुछ नही बोला सोचा तुम्हारी जरूरत है पर अब लगता है तुम्हारा लालच बढ़ता ही जा रहा है मेरे पयार और दुलार का …
एक लड़का लड़की को देखने आया थोड़ा मुस्कुराया फिर शरमाया शरमाते हुए एक परचा लड़की को थमाया लड़की परची को खोलती लड़को की माँ तपाक से बोल दी हमें …
नारी शक्ति रोशनी की कीमत पहचान ली परवाह नही अब किसी रिश्ते की आदत नही शिकायत की उम्मीद है सफलता की नन्हा सपना दुआओं के असर से तन्हा जीवन …
कलयुग का अंत होने में समय अभी शेष है कन्या, मकर, धनु मीन, हो या तुला सभी राशियों का खत्म होगा सिलसिला सोचती हूँ अगर सच हो गई ये …
गाँधी जी जिन्हे भूल चुके थे लोग आज उनके विचारों की देश को जरूरत है सत्य और अहिंसा का विचार कितना खूबसूरत है इन्ही के सहारे देश को मिली …
दिया जो टिमटिमाता है दिया जो अंधेरे मे प्रकाश दिखाता है दिया जो देने का भाव है उसे पाकर मैंने सब कुछ पा लिया प्रज्ञा की अनिल जब चली …
दीवाली की रात घर का दरवाजा खोलकर सो गए इस विश्वास के साथ कि लक्ष्मी जी अवश्य आएगीं हम पर अपनी कृपा दृष्टि दिखलाएगी धन की वर्षा कर जाएगी …
दीवाली की रात घर का दरवाजा खोलकर सो गए इस विश्वास के साथ कि लक्ष्मी जी अवश्य आएगीं हम पर अपनी कृपा दृष्टि दिखलाएगी धन की वर्षा कर जाएगी …
उनमुक्त गगन मे उड़ते हुए पंछी कल-कल ,छल-छल बहती नदिया की धारा अक्सर याद आता है मुझे गरजते हुए मेघों की गड़गड़ाहट वो आँगन में नीम पे पड़ा झूला …
मैं हूँ क्यों फिक्र करते हो रहूँगा जीवन भर तुम्हारे साथ या तुम्हारे मरने के बाद भी तुम्हारे प्यार ने मुझे अपना बना लिया है मैं तुम्हारी हर मुश्किल …
रावण दशहरे पर जब हमने जलते हुए रावण को देखा मन से मिट गई शंकाओं की रेखा कि अब कोई रावण नही बचा है राम ने रावण के शीश …
आस मेरी बस यही की ख्वाहिशें ना हों डूब कर यादों में समंदर की गहरईयों में खोजाऊँ कहीं तनहाईयोंमें आस मेरी बस यही छिप जाऊँ कहीं ना नजर आऊँ …
कविता की कल्पना मे माया की आस जगी सोना हो पास मेरे ऐसी कुछ प्यास लगी रोशन हो सूरज सा घर का हर कोना पायल की छम-छम से गूंजे …
प्रारंभ ही विजय का जब सूत्रधार है चंद्र की कला अपरंपार है अरूणिय लालिमा वातावरण को सुंदर बनाती है शशी की शीतलता मन को ठंडक पहुँचाती है यही प्रतिभा …
जख्म सीने दो मुझे गम मे जीने दो मुझे आहट अगर सुख की आए तो डर लगता है गम मे जीने दो मुझे मय को पीने दो मुझे बेवफा …
गाँधी जी जिन्हे भूल चुके थे लोग आज उनके विचारों की देश को जरूरत है सत्य और अहिंसा का विचार कितना खूबसूरत है इन्ही के सहारे देश को मिली …
राजनीति की दाल में नारों का तड़का लगाकर वोटों की रोटीयाँ खाने वाले ये नेता जाने कैसे हजम कर जाते हैं सब कुछ डकार तक नही लेते वादों का …
पल दो पल की बात नही है साथ नही है ये कुछ क्षण का साथ हमारा जीवन भर का जैसै चंदा और गगन का
मैंने कहा दुनिया मे सच नही है झूठ ने कहा मैं हूँ ना नेता ने कहा वोट नही है वादों ने कहा मैं हूँ ना पापा ने कहा घर …
फिर खुदा ने दी आवाज अल्लाह ने पुकारा शिव का डमरु डोला विष्णु ने किया शंखनाद डोल गया ब्रहमांड हर-हर महादेव का टंकारा बोलो-बोलो क्या तुम्हे है भारत देश …
खिल गई पंखुड़ियाँ धूप फिर निकल गई ढ़ल गई थी जो रात में सुबह मे बदल गई ओस की बूँद सी हर जगह बिखर गई जो चली ये पवन …