Category: प्रदीप त्रिपाठी ‘उत्पल’
कौन सा अपराध मेरा , क्यों विलग करते मुझे हूँ अविकसित भ्रूण मैं जन्म लेने माँ मुझे दे …. बधिर हूँ ना सुन सकूं ,मैं कौन सी त्रुटि हो …
आजादी का आया है पर्व,उल्लास मनायें भूखे पेटों , नंगे पैरों ,चिथड़ो में लिपटे जन भारत का उपहास उड़ायें .आजादी का आया है पर्व ,…../ है मिलते नहीं …
यदि शिखा संग देती रहेगी सदा प्रण हमारा तमस व्याप्त होगा नहीं हो विरह की अगनी से प्रकाशित धरा मिलन हो न हो तम घिरेगा नहीं , बाँध दूंगा …
क्यूँ मुक्त नहीं होती ऐ धरा , आओ बैठें हम सोंचे जरा ; क्या कायर हूँ या शक्तिहीन , क्या भिखमंगे या दुखी -दीं न ; क्या अश्त्र नहीं …
अब रहा नहीं है धैर्य मुझे , हैं फड़क रही बाहें मेरी अब सहन नहीं होती पीड़ा हे जन्म भूमि जननी तेरी ….. अब मस्तक पर तू लगा तिलक …
चलो सत्य को ढूंढें ,अरण्य में बीझ विशाल तरुओं की मूलों में अंनग,म्रदामय , मिट गया वृछ के अविर्भाव में अवशेष बीय, उर्वी उल्व में …………………………….. चलो सत्य को …
एक दीपक हम जला लें ,एक दीपक तुम जला लो आध्य मुग्धा यामिनी में ,मीलित पुष्पों को खिला लो तिमिर का निहार छाए,हर विहंगम नीड़ जाये झींगुरो की तंकस्वर …
दुराग्रह मिथ्या का ,सत्य से युद्ध का सेना प्रपंच की ,सेनापति अन्याय का दुष्कर्मों के अश्व-गज ,कुतर्कों के शश्त्रहैं नग्नता के वस्त्र धारित ,अहं के सैनिक है दुर्भावना की …
उस ओर गावं के स्कूल हमारा था छोटी -छोटी पगडण्डी से पीले -पीले सरसों के खेतों से सूने -सूने जंगल में चल कुछ पेड़ों के बीच ,तालाब किनारे स्कूल …
शब्द -शब्द को जोड़ कर ;नयी पंक्तियाँ लिख डालो समय आ गया सिंह शावकों ;नव इतिहास बना डालो पांचजन्य का शंखनाद कर ;रणछेत्रों को कूच करो रक्त बहा दो …