सज़ा mishrap1 19/07/2015 पंकज मिश्रा No Comments गाल भिगाने की खातिर क्यूँ आँख सताया करते हो, ज़िम्मेदारी के पर्दे मैं, क्यूँ हँसी छुपाया करते हो, नाम आँखें कमज़ोर नही, ये सच्ची हैं कोई चोर नही, क्यूँ … [Continue Reading...]
परिस्थिति mishrap1 19/07/2015 पंकज मिश्रा 2 Comments परिस्थिति बतला दूं तुझको, हरा नही सकती तू मुझको, तेरी एक मुस्कान पे मैं बस, थोड़ा सा घबराया था…. पहनाई संकट की माला, स्थिर जीवन तूने मथ डाला तेरी … [Continue Reading...]