Category: नोमान शौक़
हाथ हरियाली का इक पल में झटक सकता हूँ मैं आग बन कर सारे जंगल में भड़क सकता हूँ मैं मैं अगर तुझको मिला सकता हूँ मेहर-ओ-माह से अपने …
वे जो कभी नहीं रहे मुसलमानों के मुहल्ले में गंदगी के डर से जिन्होंने अहमद, मुहम्मद या अली नहीं लगाया अपने बच्चों के नाम के साथ मक्का या मदीना …
निकल जाते हैं सपने किसी अनन्त यात्रा पर बार-बार की यातना से तंग आकर गीली आँखें बार-बार पोंछी जाएँ सख्त हथेलियों से तो चेहरे पर ख़राशें पड़ जाती हैं …
जब क़त्ल होता है एक निर्दोष इन्सान का निकल आते हैं उसके ख़ून की हर बूंद से बेशुमार हत्यारे,शातिर लुटेरे और निर्लज्ज बलात्कारी ये हत्याएँ करते हैं (कुछ लोग …
शंख और अज़ान की आवाज़ पर जागने वाला शहर करवट बदल कर सो गया है एक बार फिर भारत के मानचित्र पर किसी और देश का इतिहास रचने के …
फैल रहा है विषाक्त रक्त समाज की कटी-फटी धमनियों में सरहद पर खिंची रेखाओं में दौड़ रहा है निर्विघ्न विद्युत प्रवाह की तरह जिससे बल्ब जलाए जा सकते हैं …
आकाश के एक छोर से दूसरे छोर तक उड़ रही है रंगबिरंगी मौत पतंगों की तरह बल खाती हुई जिसकी डोर गली के मनचले लड़कों के हाथों में है। …
आदी हो चुके हैं ये शब्द नेताओं की भाषा बोलने के बदलते रहते हैं इनके अर्थ भी बदलते युग के साथ इनकी बदलती भाव भंगिमाओं से तंग आ चुके …
कितना ख़ून बह गया है कविता की कटी हुई नसों से गन्दी नालियों में गिर गए हैं कितने ही ऊँचे विचार शब्द मूर्छित पड़े हैं औेंधे मुँह फ़र्श पर …
कोई दोष नहीं दिया जा सकता अपनी ही चुनी हुई सरकार को सरकार के पास धर्म होता है अध्यात्म नहीं पुस्तकें होती हैं ज्ञान नहीं शब्द होते हैं भाव …
नहीं! आप नहीं समझा सकते मुझे जीने का मतलब! नहीं बता सकते सुबह उठकर कितनी दूर टहलना कितनी देर कसरत करना ज़रुरी है तन्दुरुस्त रहने के लिए खाने के …
कसमसाती शाम के खिलते बदन पर ये सितारों का लिबास जगमगाते शहर की ऊँची प्राचीरें क़ुमक़ुमों से भर गई हैं रौशनी ही रौशनी है हर तरफ़ तुम हो जहाँ …
अतीत की छाया जब वर्तमान पर पड़ती है जन्म लेता है इतिहास तानाशाहों के भय से या उन्हें प्रसन्न करने के लिए एक पूरे काल की ममी बना कर …
यहाँ अब शोर ही कोई न सरगोशी किसी की अगर कुछ है तो शायद हो यह ख़ामोशी किसी की बिला – नागा उसे खून आदमी का चाहिए अब हमें …
आदी हो चुके हैं ये शब्द नेताओं की भाषा बोलने के बदलते रहते हैं इनके अर्थ भी बदलते युग के साथ इनकी बदलती भाव भंगिमाओं से तंग आ चुके …
टूटी हुई बाँसुरी सूखे होंठों पर धरी है बरसों से टूटा हुआ गुलदान पड़ा है मेरे सामने फूलों की बिखरी पंखुड़ियाँ भी नहीं चुनी जा सकतीं टूटी हुई व्हील …
अगर स्वस्थ रहने का मतलब वातावरण का सारा ऑक्सीजन अपने फेफडे में भर कर अमर हो जाना है तो मुझे नही चाहिए यह ज़िन्दगी अगर अपने खेत सींचने का …
1. उत्तरी-गोलार्ध्द से दक्षिणी-गोलार्ध्द तक एक मरीचिका से दूसरी मरीचिका तक दौड़ते-दौड़ते थक चुके हैं हम प्रदूषण, अन्वेषण और अविष्कार के युग में कहीं दिखाई नहीं देती कोई निर्मल, …
किसी मन्दिर की घन्टी से डरा सहमा हुआ भगवान इक टूटे हुए वीरान घर में जा छुपेगा और पुजारी ख़ून में डूबे हुए त्रिशूल लेकर देवियों और देवताओं को …
भटक रहा है दिमाग़ मेरा मुझे मिले तो सुराग तेरा गुलाब वाले अज़ाब निकले भला भला सा था बाग मेरा मैं दिल की ऐनक उतार फेंकू मिले जो उससे …
सुनता रहता हूं किसी का मार्मिक रूदन किसी का दिल दहला देने वाला विलाप चुपचाप निकाल न पाया मैं कोई क़ीमती सामान अपनी जान बचाने की ललक या जान …
मैं देख रहा हूँ बहुत दिनों से क़ातिल का चमकता ख़न्जर ख़न्जर से टपकती लहू की बूंद और इस बूंद से माथे पर तिलक करता इतिहास धरती की कोख …
आदी हो चुके हैं ये शब्द नेताओं की भाषा बोलने के बदलते रहते हैं इनके अर्थ भी बदलते युग के साथ इनकी बदलती भाव भंगिमाओं से तंग आ चुके …
धूप आती रही इस काँच के घर में खुद ही वो गिरफ्तार हुआ मेरे असर में खुद ही तुम तो बस हाथ हिलाते हो गुज़र जाते हो शहर आ …
हम शपथ लेते हैं हिंसा से दूर रहने की अत्याचार और असमानता के ख़िलाफ़ पूरी ईमानदारी से जंग लड़ने की मौन रखते हैं दो मिनट का अनाथ हो चुके …