Category: नितिन कुमार पाण्डेय
इक नहीं आप ही तनहा ये ग़म उठाते हैं कितने परवाने हैं जो इसमें जले जाते हैं रस्म-ए-उल्फ़त की निभाना नहीं आसां इतना उम्र हम अहद-ए-वफ़ा पर गुज़ारे जाते …
तेरी गुस्ताख़ निगाहीं से परीशाँ हूँ मैंकिसी दिन खुल के ये कह दे की तेरी जां हूँ मैंमुझको आता नहीं बातों को बनाना शायदगुफ़्तगू सुन के तेरी इसलिए हैरां …
मेरे होटों पे अभी तक है तबस्सुम के सिलसिलेगयी रात मेरे ख्वाबों में वो जो हमसे आ मिलेमुझको तो एक पल की भी फुर्सत नहीं तुझसेतुझको कहाँ से है …
गर लफ्ज़ मेरे गीत हैं तो, तुम शाइस्ता साज़ होऐ हुस्न-ऐ-बेपरवाह, तेरा हुस्न उम्रदराज़ होकुछ ख्वाब मेरे ज़ेहन में अल्फ़ाज़ बन के हैं ढल रहेमेरे अनकहे इन नग्मों की …
बहुत नादान है ये दिल तेरे सपने संजोता है तू बन जाए मेरी ऐसा तो बस ख्वाबों में होता है मेरे लब ख़ुश्क, आँखों में मेरी सागर उमड़ता है …
ठहरी हुई सांसें मेरी आवारा कर गयी खुश्बू तेरे एहसास की जो मुझको छू गयी रंग-ए-सफ़ेद पैरहन में लिपटी हुई मूरत काली सियाह रातों में एक नूर भर गयी …
तुझे कोशिशों का सुरूर था जो ज़माना इतना बदल गया तेरे इल्म से जो उरूज था तेरे साथ सूरज ढल गया
वो वस्ल-ए-यार का लम्हा अभी तक याद है मुझको बेसब्र दिल का वो धक से धड़कना याद है मुझको दीदार-ए-यार को मुन्तज़िर डूबी हुई आँखें मुख़ातिब होते ही हैरान …
मुझे वो हमेशा समझ लेगा, यही गुमान-ए-सुकून था मेरा हाथ वो भी छुड़ा रहा कभी मुझपे जिसको ग़ुरूर था ये जो ताल्लुक में हैं तल्खियाँ न मुझे, न उसको …
मेरी तीरगी के चराग सब एक एक कर के हैं बुझ रहे कभी जिनसे मेरा वक़ार था वही आज मुझसे हैं छुप रहे न है जुगनुओं की ही रौशनी …
तशना-ए-ज़िन्दगी के सफर में तुझे जो मिला वही मिला थी जुबां किसी की कटी हुई तो ज़ेहन किसी का बिका हुआ तेरी ज़िद जिन्हे अच्छी लगी वही साथ तेरे …
अजब सी कश्मकश है तेरी उल्फत में मेरी जाना मिले जितना मगर फिर भी थोड़ा कम ही लगता है नज़र की शोखियां, बेबाकपन और शरमाना तुम्हारा ये करम भी …
जैसा तूने कहा वैसा हर बार कर दिया तेरे इश्क़ ने मुझको बीमार कर दिया छीन लिया है मेरा चैन-ओ-करार और जीना मेरा दुश्वार कर दिया ना जाने कितनी …
रात कटती नही , सुबह होती नहीं , पलके नम हैं मगर , आँखे रोती नहीं तुमसे होके जुदा ऐ मेरे हमनशी चाँदनी से भी अब बात होती नहीं …
ख्यालों में तुमको ही पाया है मैंने तुम्हे अपने दिल में बसाया है मैंने तुम्ही से मेरे दिन तुम्ही मेरी रातें ख़ामोशी मेरी तुम तुम्ही मेरी बातें तुम्ही मेरी …
रफ़्ता रफ़्ता तुझसे वाबस्ता हो रहें हैं जाने क्या मिल रहा है जाने क्या खो रहे हैं तुझसे मिले हैं जब से दो आलम हुआ है ये दिल हम …
ज़िक्र होता है मेरा बारहा उसकी जुबां पर हिचकियाँ बेसबब मुझे यूँ ही नहीं आती वो जब सोती है तो भीग जाता है तकिये का कोना सिसकियाँ बेसबब मुझे …
मेरी आवाज़ सुनकर के तुम्हारा जी बहलता है तुम्हारी इन अदाओं पर हमारा दम निकलता है मेरी खामोशियों को जब से तेरा दिल समझता है तुझे पाने को तब …