Category: निसर्ग भट्ट
उन खोखले वादों की कटारों से,हम हररोज़ कटते रहते है,उन भयंकर भ्रमजालों से,बहार निकल नहीं पाते है ।उस अदृश्य आशा की तलाश में,हररोज़ भटकते रहेते है,हर शाम खुद से …
गरीबों की गरिमा को कानून की चौखट पर बेबसी से बिकते देखा है हमने, अमीरों के आँगन में ईमानदारी को निलाम होते देखा है हमने, देश के अन्नदाता को …
वेदों का विलक्षण विचार है ये, पुराणों के पवित्रता की पराकाष्ठा है ये, उपनिषदों की उदारता का उदाहरण है ये, और गीता का गौरवशाली ज्ञान है ये, ये भगवा …
हर राष्ट्रवादी रों पड़ा, उन छात्रों के काले करतूतों से, हर भारतीय शर्म से पानी हुआ, उन देशद्रोह के नारों से । इस देश का नमक खा कर भी …
पता नहीं कभी कभी क्यों खुद को इतना अकेला पाता हूँ, हजारों की भीड़ में भी पंछियों के सुरों को सुन पाता हु । कभी समंदरों से भी गहरी …