Category: नीलेश रघुवंशी
आकाश के लिए नहीं है नहीं है दीवारों के लिए खिड़की से दिखती ज़रूर है लेकिन खिड़की के लिए भी नहीं है सड़क! पाँव से डामर को छुड़ाते सोचते …
उसने अपनी जेब में इतने अहंकार से हाथ डाला कि उस पल मुझे लगा काश! किसी के पास जेब न होती तो कितना अच्छा होता आख़िर क्यों हो किसी …
मैं माला फेरना चाहती हूँ सामने दिख रहे झाड़ के नाम की… नदी के नाम की जिसका पानी पिया… उस आम आदमी के नाम की जिसके हिस्से की जगह …
पक्षियों को झुण्ड में जाते देखती हूँ जब भी पहुँच जाती हूँ बचपन के दिनों में देखती हूँ जब भी मछलियों को जाल में फँसा बेटियों को विदा करते …
चांद के पास तारे तारों के पास आकाश धरती के पास पेड़ पेड़ों पर फल-फूल फल-फूल के पास आधी धरती आधा आकाश आधी धरती आधे आकाश के बीच कुल्हाड़ी …