Category: निलय उपाध्याय
कुत्तों और गिद्धों के बीच छिड़ी भोजन की जंग में आदमी गिद्धों के साथ था सुबह की सुनहरी धूप में डांगर का माँस इतना रक्तिम, इतना ताज़ा लग रहा …
पत्नी घर में नहीं और रुपए भी नहीं और समान ज़रूरी-कहीं तो जाना ही होगा इस घर के लिए आज अरे! यह तो मैं सोच भी नहीं सकता था …
कुत्तों और गिद्धों के बीच छिड़ी भोजन की जंग में आदमी गिद्धों के साथ था सुबह की सुनहरी धूप में डांगर का माँस इतना रक्तिम, इतना ताज़ा लग रहा …
यह कोई घटना नहीं थी दुर्घटना तो कतई थी ही नहीं महज संयोग था कि हम खड़े थे सड़क के किनारे और हड़-हड़, खड़-खड़ करते सामने से गुज़र गया …
मेरे मुँह मे ठुँसा है कपड़ा ऐंठ कर पीछे बँधे हैं हाथ कोई कलगी नोचता हॆ कोई पाख कोई गर्दन काटता हॆ कोई टाँग हलक मे सूख गई हॆ …
टूट गई चूहेदानी टूट गया बरसों का संचित यक़ीन दीवारों को जंग खा गई लाचार है लौह-तीलियाँ कह भी नही पाती कि चौकस नहीं रही अब उसकी चोंच घर …
मेघ भरे आसमान के नीचे हमें प्यार की चुटकी से निकालो हम बीजड़े हैं धान के हाथ को ज़रा-सा हवा मे लहराओ और रोप दो कहीं भी जीवन में …
महज आधा घंटे की देर ने जब अलग कर दिया काम से तो फूटी अकल और अगले दिन साथ आई स्टेशन पर सायकिल गाड़ी आई तो छतो से जैसे …
1. एक है राम लगन दूसरा सी टहल दुनिया के साथ दुनिया से अलग बैठे रहते है पीपल के नीचे इस तरह ताजगी से भरे जैसे धरती का दूध …
मैं नहीं जाऊँगा दुकान पर, मुझे तो पहचानता भी नहीं कमबख़्त दुकानदार जाऊँगा जाऊँगा और कहूँगा उधार दो दो किलो चावल.. एक किलो प्याज पूछेगा कौन हैं आप, तो …
दीदी भाभी के घर में सो जाएँगी भईया छत पर, बाबूजी को भी वहीं आराम होता पर कोई तो होगा, कुटुम्ब के साथ वे सो रहेंगे मम्मी के बॅसखट …
मैं गाँव से जा रहा हूँ कुछ चीज़ें लेकर जा रहा हूँ कुछ चीज़ें छोड़कर जा रहा हूँ मैं गाँव से जा रहा हूँ किसी सूतक का वस्त्र पहने …