Category: नील कमल
हाथ सुंदर लगते हैं जब होते हैं किसी दूसरे के हाथ में पूरी गरमाहट के साथ हाथ ख़तरनाक लगते हैं जब उतरते हैं किसी गर्दन पर हाथों को पकड़ने …
सुबह होने का अर्थ सचमुच बदल जाता है जब एक बच्चा कंगारू नभ प्राची की थैलीनुमा गोद से झाँकता है, उसकी एक ही छ्लाँग में चमक जाता है पृथ्वी …
कहना पड़ता है कि सब ठीक है कहना पड़ता था गाँव के डाकमुंशी को कि सब ठीक है जबकि इस ठीक होने में इकलौते बेटे की लम्बी बीमारी भी …
पेड़ की जिन शाखाओं ने सौंप दिए सबसे पहले अपने कंधे, हवा में उठी कुल्हाड़ी को वहीं से उगीं मौसम की सबसे हरी पत्तियाँ पत्थर के जिन टुकड़ों ने …
बिदेसिया गीत को याद करते हुए दिन गिनते पिराती रहीं उनकी अँगुलियाँ, राह तकते दुखती रहीं उनकी आँखें, वे शोक में डूबी रहीं जहाँ भी गईं उनके आँगन में …
उठता हूँ नींद से और ईश्वर को धन्यवाद देना भूल जाता हूँ कि एक दिन की ज़िन्दगी आई हक़ में तैयार होता हूँ, नए दिन को रोज़ की तरह …
रघुवीर सहाय के रामदास के लिए गाड़ी की काया में आत्मा-सा सिमटा यह आदमी जीवन के रंगों को अर्थ नए देता, भाषा के वर्णाक्षरों के सहारे मापता ज्ञान के …
शाखों सरक रहे हैं पौरुषपूर्ण तनों के कंधों से पीतवर्णी उत्तरीय ढुलक रही है अलसाई टहनियों के माथे से हरी ओढ़नी एक थके पेड़ के उघड़े सीने पर फूली …
1. स्वाभाविक मौत भी, देखिए आती है बड़ी मुश्किल से खण्डहर की उम्र जीते हैं, तमाम बुरे लोग जिसके ढहने का अन्दाज़ा नहीं होता अच्छे लोगों को अच्छे-बुरे के …
पाताल-रेल में फ़ँसी एक तितली को देख कर… यह दुनिया का सबसे रंगीन सपना है जो भटक गया है सुबह सात-पन्द्रह की मेट्रो में जबकि आधा शहर ऊँघ रहा …
जनपद की भाषा में यह पूरा पहाड़, ‘खरसाङ’ है, यहाँ आकर ही मालूम होता है ‘खरसाङ पर चढ़ना’, महज मुहावरा नहीं यहाँ बसता है, एक ख़ामोश जनपद यह जनपद …
कठिन वह एक डगर और नमक पड़ा जले पर इस तरह तय किया सफ़र हमने पिता के जूतों में इतिहास की धूल और चुभते कई शूल, समय के, चलते …
तेज कँपकँपाते बुख़ार में नर्म रेशमी चादर की गरमाहट का नाम, पिता है भूख के दिनों में खाली कनस्तर के भीतर थोड़े से बचे, चावल की महक का नाम, …
ऐसे भी शुरू हो सकती है पानी की कथा एक लड़की थी हल्की, नाज़ुक-सी और एक लड़का था हवाओं-सा, लहराता, दोनों डूबे जब आकण्ठ प्रेम में तब बना पानी …
भोर की गाढ़ी नींद में कोई सपना प्रवेश करता है गुप्तचर की तरह और पकड़ा जाता है भोर की नींद के उचटते ही यह सपना सदियों से पीछा कर …
आँख के पानी में एक क़तरा पसीने की बूँद में लहू की धार में होठों की नमी में एक-एक क़तरा समुद्र के अथाह जल में घेरे पृथ्वी का तीन-चौथाई …
1. नौकाएँ लौट आई हैं घाटों पर, दोनों ओर हवाओं का भीषण शोर एक सोई हुई नदी की नींद में पड़ चुका है ख़लल स्याही ढल चुकी है ढेर …
धूल मेरे पाँव चूमती है धन्य होते हैं पाँव मेरे धूल को चूम कर धूल को चुम्बक-सा खींचता है वह पसीना, चमकता हुआ मस्तक पर जो थकान से भीगी …
अपराधी नहीं काटते दाढ़ी दाढ़ी संन्यासी भी नहीं काटते दाढ़ी में रहता है तिनका तिनका डूबते का सहारा होता है दाढ़ी वे भी नहीं काटते जिनके पास इसके पैसे …
पलकों पर नींद की गठरी भारी पीठ पर लादे कैसी दुनियादारी साधो, इस्पात के पहिए-सा यह जीवन समय जिसे खींचता है पटरी पर, इस जीवन में नहीं नवजातक की …
1. बहुत गहरे धँसी थीं वे जड़ें जिनसे जुड़े रहे हम दूर परदेस में, जड़ों से बहुत दूर कुछ घोंसले थे, ऊँची टहनियों पर इन घोंसलों को शहर कहते …
जोड़ों में दर्द बोझ से उसकी झुकी कमर बेचैन तबीयत की वो शायरी थी यारो, सुर्ख़ी थी इबारत में बातों में कुछ कसक-सी घायल एक सिपाही की वो डायरी …
एक माँग है, स्वर्ण रेखा-सी कि सूनी सड़क एक, रक्ताभ समय जिसपर चहलकदमी करता काले बादलों में दो आँखें हैं डबडबाई-सी कि अतलान्त का खारापन असंख्य स्वप्न सीपियाँ जगमगातीं …
यूँ कि च्युइंगम से लेकर बोतल-बंद पेय सहित तमाम सौंदर्य-प्रसाधन, उपलब्ध हैं स्ट्राबेरी, वैनिला आम, अमरूद, केला और न जाने कितने ही फ़लों के स्वाद-गंध में यूँ कि स्वादिष्ट …
बहुत सोचा, मेरी जान मैंने तुम्हारी जानिब और तय पाया कि कठिन समय का कठिनतम मुहावरा है प्रेम प्रेम की खोज अक्सर अनगिनत तहों के भीतर एक और तह …