आगे तौ कींन्हीं लगालगी लोयन विनय कुमार 19/04/2012 नेवाज़ No Comments आगे तौ कींन्हीं लगालगी लोयन, कैसे छिपै अजँ जो छिपावति। तू अनुराग को सोध कियो, ब्रज की बनिता सब यौं ठहरावति॥ कौन सँकोच रह्यो है ‘नेवाज, जो तू तरसै … [Continue Reading...]
तू ही को चाहत वे चित मौ अरु तू ही हियो उनपै ललचावत विनय कुमार 19/04/2012 नेवाज़ No Comments तू ही को चाहत वे चित मौ अरु तू ही हियो उनपै ललचावत । मैं ही अकेली न जानत हूँ यह भेद सबै ब्रजमँडली गावत । कौन सँकोच रहो … [Continue Reading...]