Category: नेमिचन्द्र जैन
आगे गहन अन्धेरा है, मन रुक-रुक जाता है एकाकी अब भी है टूटे प्राणों में किस छवि का आकर्षण बाक़ी? चाह रहा है अब भी यह पापी दिल पीछे …
धूल-भरी दोपहरी जगती के कण-कण में गूँजी आकुल-सी स्वर लहरी सरस पल आते-जाते करुणा सिकता भर लाते एक मूर्च्छना-सी प्राणों पर बेमाने बरसाते अलसता होती गहरी। मधुर अनमनी उदासी …
परसों फिर हमेशा की तरह पत्नी बच्चे और शायद कुछ मित्र कहेंगे मुबारक हो। बार-बार आए यह दिन। मुबारक। कब तक मुबारक? बार-बार और कितनी बार चौहत्तर के बाद? …
दरज़े दो ही हैं दूसरा पहला खचाखच भरा है दूसरा पहले में नहीं है भीड़ मारामारी कहाँ है तुम्हारी जगह कोशिश कर सकते हो तुम चढ़ने की पहले दरज़े …
कहाँ गये सारे लोग कहाँ गये सारे लोग जो यहाँ थे, या कहा गया था कि यहाँ होंगे लग रहा था बहुत शोर है, एक साथ कई तरह की …
कितने दिनों बाद आज फिर जब तुमसे सामना हुआ उस भीड़ में अकस्मात , जहाँ इसकी कोई आशंका न थी, तो मैं कैसा अचकचा गया रँगे हाथ पकड़े गये …