Category: नीरज सारंग
सब कुछ पाने के बाद भी कुछ भी अच्छा न लगता हो,तब ही प्रेम है।सबकुछ खो जाने के बाद भी कुछ भी अच्छा लगता हो,तब ही प्रेम है।संसार भर …
मेंने दुनिया भर में भीख माँग ली है,हे मेरे प्रेमी! क्या अब वह समय आ गया है?जीवन की बंद हाथों से देह वायु की तरह ऊड़ जाए|मैं-तू की झूठी …
हे प्रभु! क्या इस देह का अंतिम समय आ गया है? क्या जीवन का झरना थम रहा?मेरा अहंकार मिटाकर गीतों को गले से लगा ले,बस यहीं चाह है!बार-बार तुझे पुकार-पुकार …
जब तक प्रेम जीवित है यह जीवन का होना अनुभव होता है। मैने दिन-रात, हर वर्षा और तपती धूप की पथरीली राह पर तुझे देखने की कोशिश की है। …
एक ही प्रेम न जाने कितनी बार कितने विभिन्न रुपों में,तेरे से कब, क्यूँ, कैसे हुआ- यह भी स्मरण नहीं।कब प्राण गीतों के सरगममेरे मुँख से निकले और तू …
वायु के पंछी गीतों के फूल चुनते हैं,बरसात की झड़ी बरसकर फिर व्याकुलता से जाने किसकी राहें देख रहीं,कौन जाने आज गगन का ह्रदय इतनी ज़ोर-ज़ोर क्यूँ धड़क रहा,तुमने …
मछुवारा मछली को अपने आभासी जाल में फँसा लेता है और उसे उसके जीवन और संसार से मुक्त कर देता है मछुवारा मृत्यु और प्रेम दोनों ही है लेकिन …
प्रेम-पुष्प के हृदय में छिपा स्वर्ण भाग को आभास करने वाला एक कलाकर हो जाता है वो कवि या दार्शनिक भी हो सकता है – नीरज सारंग
” यदि सिंधु-जल धरती के अश्रु हैं और उसके हृदय में ज्वालामुखी तो मैं नहीं जनता हूँ पृथ्वी इतना दुःखी क्यूँ है ” – नीरज सारंग
प्रेम और वसना दोनों एक दूसरे के व्युत्क्रमानुपाती आनुपातिक हैं, यदि एक में परिवर्तन होता है तो दूसरे में ठीक उसके विपरीत – नीरज सारंग
“ जब तन के घोंसले से प्राण का पक्षी निकल जाये तो वह अंत नहीं है उसका तात्पर्य है सुबह हो गयी और वो तो केवल न जाने किस …
“ आकाश अपने हृदय पुष्प की पंखुड़ियाँ सदैव खुला रखता है यह आपके उपर है कहाँ तक उसमें देख लेते हैं ” – नीरज सारंग
” प्रेम उस पक्षी की तरह है जो सोने के पिंजरे में होते हुए खुले आकाश की ओर ही देखता है और सम्पूर्ण सौन्दर्य संसार भ्रमण करने के पश्चात …
मृत्यु वो अंधकार है जो मुक्ति के प्रकाश की ओर ले जाती है – नीरज सारंग
जहाँ अपने गीतों के माध्यम से मूल्य और परिचय न लिया जाता हो जिस सभा में गीत सुनने के बाद कोई हँसी-रूदन नहीं करता हो जहाँ विश्व भर के …
सूनेपन की गरज-बरस में मन मेरा भीगे रिमझिम बारिश की टप-टप बूँदों में तू आ जा आकाश की ओढ़नी ओढ़े सिमट-लिपट कर मुझे सुला तू हृदय की दीवारों में …
जो गीत हृदय की फूलवारी में है खिला हे प्रभु! गिरने से पूर्व उसे तोड़ ले तेरे पग-धूलि की घनी वाटिका में मेरा हर गीत सुमन सज जाने दे …
गाँव से दूर, पार इन उँची पहाड़ियों के दूर-दूर तक जहाँ नदी-झरने नहीं मेरे पूर्व ही है यहाँ उनकी खेती भय-संदेह के पुष्प खिले हैं मन में अब आगे …
पंछी का घोंसला ही पिंजरा हो गया है भाग्य-रेखा में क्या यहीं अंकित था? हे सर्वश्रेष्ठ किसान! तूने खेत-खलिहान, पर्वत, नदी, जलधि, वायु, प्रकाश की खेती की थी जिस …
संध्या हो रही, दिन बीत रहा है अपने घोंसलों की ओर पक्षी उड़ आ रहें तटहीन जलधि पार कर लौट रहें हैं प्रतीत होता है तू भी होगा झुण्ड …
उस नयी प्रभात को धुंधली आँखें मेरी कोहरे से भरे पथ पर सहसा खुंली मैंने दूर तक देखने का प्रयत्न किया सुनसान, अज्ञात दूरी और झाड़ियाँ दिखीं लेकिन पथिक …
वेदना-वर्षा बेरोक घोंसलें में है आती बोल पंछी की अंधेरे में मिलती जाती सूने-सूने घोंसलें में अकेले हूँ जीता जग त्याग उड़ जाना मुझको न भाता वो दिन न …
जीवन-संध्या की बोल का कष्ट पीर तीर का वस्त्र किया धारण फंसे हुए हैं प्रत्येक नीच-श्रेष्ठ दूर नहीं कोई किसी भी कारण वेदना! तू भेंद न मन को बढ़कर …
मैं अपने देश सहित भूला हुआ अज्ञानी हवाओं संग मग्न झूलता हे ईशवर! अपने संविधान के ज्ञान हेतु कृपया देश को अब शिष्य बना प्रत्येक का तू ही बन …
रक्त की सरिता बह रही थी प्रतिक्षण कट रहे थे सिर विकराल मुँह खोल रहा था मृत्यु का यह कैसा असर? विजय किसकी निर्णय ज्ञात नहीं गूँज “मारो अन्यथा …