Category: नीरज दइया
जिंदा रहती है लड़की में गुड़िया जिंदा रहती है औरत में लड़की अंत में वह गुड़िया बन जाती है बुढ़िया !
गुड़िया-सी थी एक लड़की बनी वह एक औरत और जन्म दिया एक गुड़िया को अब फिर गुड़िया एक लड़की है उसे भी बनना ही होगा औरत फिर ……
किसी अभिव्यक्ति के लिए चाहिए असरदार कुछ शब्द कवि ने कहे- कुछ शब्द हम समझे- कुछ शब्द शेष रह गए- कुछ शब्द ! ऐसे में कुछ शब्द हो जाते हैं …
किसी भी उड़ान के लिए एक आंख चाहिए और चाहिए आंख में एक सूर्यदर्शी सपना ।
प्रेम होने पर तुमसे कहा मैंने- प्रेम एक कुआँ है, जिसमें गिर पड़ा हूँ मैं या प्रेम एक पहाड़ है जिस पर चढ़ गया हूँ मैं । तुमने कहा- …
तुम्हारे ना कहने के बाद भी क्यों है तुम्हारा इंतज़ार लगता है कि तुम आओगी । बार-बार आहट सुनता हूँ और खोलकर देखता हूँ- घर का दरवाज़ा इंतज़ार में …
जो नहीं कही गई नहीं जाएगी कही बातों के साथ हैं कुछ बाते ऐसी भी ! वे बातें भुलाई नहीं जा सकती बताई नहीं जा सकती कभी मन के खुलने …
देवता घट में आए फरमाया किसी चूक के विषय में मच गई हलचल चारों तरफ देखते ही देखते खुश किए गए । आस-पास रहते हुए भी अपनों से रहते …
मैं गफलत में रहा तुम लगा-लगा कर मुखौटे रचते रहे नित नए स्वांग । दूर रख कर सच से सिद्ध किए तुमने स्वार्थ और आज मैं पहचानते हुए भी …
मैं थक गया ठूंठ कहता है- यह भी कोई जीना है लाओ तुम्हारी कुलहाड़ी । मैं पहचानता हूं प्रार्थना के भीतर छिपी लाचारी ठूंठ करता है प्रणाम मुक्ति की …
रचना के मूल में सदैव ही रहता है कोई बीज जैसे कविता में मिलता है कथा का बीज और कथा में कविता का कविता करती है प्रतिस्पर्धा कहानी से …
दर्द के सागर में मैं डूबता तिरता हूं कोई नहीं थामता मेरा हाथ । मैं नहीं चाहता मेरी पीड़ा का बखान पहुंचे आप तक या उन तक । लेकिन …
थूं अर म्हैं पाळ्यो हजार-हजार रंगां रो एक सुपनो। थारी अर म्हारी दीठ रो थारै अर म्हारै सुपनां रो एक घर हो जिको अबै धरती माथै कदैई नीं चिणीजैला। …
मैंने संभाल रखा है तुम्हारा दिया हुआ- गुलाब । जब तुमने दिया था तब मैं नहीं जानता था उसे लेने का मतलब । नहीं जानता था मैं कि किसी …
दर्द के सागर में मैं डूबता तिरता हूं कोई नहीं थमता मेरा हाथ । मैं नहीं चाहता मेरी पीड़ा का बखान पहुंचे आप तक या उन तक । लेकिन …
जब-जब तुम्हारी आँख से झरे हैं आँसू उन तक पहुँचे ही हैं हमेशा मेरी स्मृति के अदृश्य हाथ । तुम्हें उन का स्पर्श हो या न हो पर मैंने …
यहाँ वर्षों बाद वापस लौटा हूँ क्यों चाहता हूँ देखना – वह घर-गली-आंगन अब क्या लेना-देना उस बीते वक़्त के निशानों से । सब कुछ बदल गया जब बदलता …
डरता है बच्चा अँधेरे से डरता-डरता वह सीखता है – नहीं डरना ! एक दिन आता है ऐसा भरी दोपहरी बच्चा पहचान लेता है उजास में अँधेरा । बच्चा जब …
सूरज-चांद की गुड़कती गेंदों पर नहीं रीझूंगा मैं जानना चाहता हूँ मैं कि शेषनाग के फन पर टिकी हुई है या किसी बैल के सींगों पर यह धरती ! जानना …
निरन्तर बीमारी में अधरझूल झूल रही है दादी । यह झूलना लगभग ख़त्म ही समझो अब लेकिन मन नहीं भरता, दादी का । दादी ! क्यों है तुम्हारा जीये जाने …
तुम्हारी स्मृति अभी तक नहीं भूली मुझ तक पहुंचने के रास्ते मैंने सहेज कर रखी है तुम्हारी स्मृति अपने सपनों के संग ! सीमाएं सदैव बदली और कुछ बदले हम …
बड़ी गवाड़ बीकानेर माथै एक तांगैवाळो हो जिको हरेक चलतै नै बकारतो- “चालो माजी कोटगेट।” बो काल म्हारै सपनै में आयो। म्हैं बीं नै ओळख लियो कारण कै एक …
“ओ ऊंठ दांईं सूतो ई रैसी कांई?” जीसा रा बोल उठतां ई उण रै कनां पड्या। स्यात् बो खासी ताळ भळै ई सूतो रैवतो, पण अबै बो आंख्यां मसळतो …
म्हैं म्हारै दुख बाबत कीं कैवूं किंयां ? छत्तीस बरसां सूं म्हैं म्हारै मूंढै तो पाटी बांध्योड़ी है । इत्ता बरसां पछै ई म्हांरी गूंगी जात नै थे ओळख नीं …
इंदर-धनुस जोयां नै बरसां रा बरस बीतग्या । अकाळ अर बिखै री गंगरत टाळ म्हारा कवि, बाकी कीं दाय ई कोनी करै- कविता लिखण खातर । एम. एससी. पास …