Category: नौशाद लखनवी
रंग नया है लेकिन घर ये पुराना है ये कूचा मेरा जाना पहचाना है क्या जाने क्यूं उड़ गए पंक्षी पेड़ों से भरी बहारों में गुलशन वीराना है
न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा होता हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता न ऐसी मंजिलें होतीं, न ऐसा रास्ता होता …
न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा होता हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता न ऐसी मंजिलें होतीं, न ऐसा रास्ता होता …