Category: नाथूराम शर्मा ‘शंकर’
विधाता तू हमारा है, तुही विज्ञान दाता है, बिना तेरी दया कोई, नहीं आनन्द पाता है। तितिक्षा की कसौटी से, जिसे पू जांच लेता है, उसी विद्याधिकारी को, अविद्या …
साँची मान सहेली परसों, पीतम लैवे आवेगो री! मात-पिता भाई-भौजाई, सबसों राख सनेह-सगाई, दो दिन हिल-मिल काट यहाँ से-फिर को तोहि पठावेगी री! अबको छेता नाहिं टरेगो, जानों पिय …
बीता यौवन तेरा, बुढ़िया बीता यौवन तेरा। धौरा रंग जमाय जरा ने, कृष्ण कचों पर फेरा, झाडे़ दाँत, गाल पटकाये, कर डाला मुख झेरा। आँखों में टेढ़ी चितवन का, …
आज मिला बिछुड़ा बर मेरा, पाया अचल सुहाग री ! भभका बेग वियोगानल का, स्रोत जलाया धीरज-जल का, डूबी सुरत-प्रेम-सागर में, बुझी न उर की आग री ! इत-उत थाँग लगाती …
मिल जाने का ठीक ठिकाना अब तो जाना रे। बैठ गया विज्ञान-कोष पै, गुरु-गौरव का थाना, प्रेम-पन्थ में भेड़चाल से, पड़ा न मेल मिलाना, बदला बानारे, अब तो जानारे …
घर में रहा न रहने वाला। खोल गया सब द्वार किसी में, लगा न फाटक-ताला, आज निशंक अदृष्ट बली ने, घेर-घसीट निकाला। जाने किस पुर की बाखर में, अबकी …
या भवसागर को तुम कैसे तर जाओगे भाई। ठत बन्धन उत मुक्ति किनारो, भौतिक तारतम्य भण्डारो, प्रकृति-प्रभाव भरो जल खारी, विधि-गति-गहराई। द्वन्द्व ज्वार-भाटा झकझोरें, उमड़ें विविध विकार-हिलोरें, जड़-चेतन संघात …
यों शुद्ध सच्चिदानन्द, ब्रह्म को बतलाता वेद। केवल एक अनेक बना है, निर्विवेक सविवेक बना है, रूपहीन बन गया रंगीला लोहित, श्याम सफेद। टिका अखण्ड समष्टि रूपसे, खण्डित विचरे …
अरी उठ खेल हमारे संग। आँखें खोल बोल अलबेली, उर उपजाय उमंग, ऐसो खेल पसार सहेली, होय अलख लख दंग। करि, केहरि, कपोत, काकोदर, कोकिल, कीर कुरंग, कलश, कंज, …
घर को छोड़ गयो घर वारो। बारह बाट आज कर डारो, अपनो कुनबा सारो, भोग-विलास विसार अकेलो, आप निशंक सिधारो। शोभा दूर भई बाखर की, धाय धँसो अँधियारो, चरों …
भारी भूल में रे, भोले भूले-भूले डोलें। डाल युक्ति के बाट न जिसको, तर्क-तुला पर तोलें, अन्धों की अटकल से उसको, टेक टिकाय टटोले। पाय प्रकाश सत्य-सविता का, आँख …
अब तो वाद-विवाद विसार। वीर बहाय जाति-जगती पर प्रेम-सुधा की धार, धारा में नीकी करनी की नयी नवरिया डार। तू केवट बन ता करनी को दान-वेणु कर धार, जीवन …
कैसा कठिन बढ़ापो आयो। बल बिन अंग भए सब ढीले, सुन्दर रूप नसायो, पटके गाल, गिरे दाँतन को, केशन पै रंग छायो। हाले शीश, कमान भई कटि, टाँगन हूँ …
चलोग बाबा, अब क्या प्रभु की ओर ! खेल पसारे बालकपन में, उकसे रहे किशोर, आगे चल कर चन्द्रमुखी के, चाहक बने चकोर। पकड़े प्राणप्रिया वनिता ने, बतलाये चित-चोर, मारे …
है परसों रात सुहाग की, दिन वर के घर जोन का। पीहर में न रहेगी प्यारी, हा! होगी हम सब से न्यारी, चलने की करले तैयारी, बन मूरति अनुराग …
जिस अविनाशी से डरते हैं, भूत, देव, जड़, चेतन सारे। जिसके डर से अम्बर बोले, उग्र मन्द गति मारुत डोले, पावक जले, प्रवाहित पानी, युगल वेग वसुधा ने धारे। …
सुख-दाता तू प्रभू मेरा है। तेरी परम शुद्ध सत्ता में, सब का विशद बसेरा है। सुख-दाता तू प्रभू मेरा है। केवल तेरे एक देश ने, घटक प्रकृति का घेरा …
‘शंकर’ प्रतापी महामण्डल की पूजा करो, भेद वेदव्यास के पुराणों में बखानिए। बोध के विधाता मतवालों को बताते रहो, आपस में भूलकै भिड़न्त की न ठानिए। जूरी जाति-पांति की …
डगमग डोले दीनानाथ, नैया भव-सागर में मेरी। मैंने भर-भर जीवन भार, छोड़े तन-वोहित बहुबार, पहुंचा एक नहीं उस पारत्र यह भी काल-चक्र ने घेरी। टूटा मेरुदण्ड-पतबार, कर-पग-पाते चलें न …
नवेली उठ बोल ! वेणी-नागिन विकल पड़ी है, शिथिल माँग मुख खोल, खंजरीट मृग खोल रहे हैं, नयन-सुयश की पोल। लला अधर बिम्बा-फल सूखे, पड़ गये पीत कपोल, दशन-मोतियों की …
पाया सद्सदुभय संयोग चतुर चातुरी से कर देखो, अमित यत्न उद्योग, इनका हुआ न है न होगा अन्तर युक्त वियोग। कोन मिटावे जड़-चेतन का, स्वाभाविक अतियोग, ठोस-पोल के अलग …
श्री गुरुदेव दयालु हमारे, बड़भागी हम सेवक सारे। बाल ब्रह्मचारी बुध नीके, जीवनमुक्त सुधाम सुधीके, सांचे शुभचिन्तक सब ही के, विरति-वाटिका के रखवारे। धर्मवीर सागर साहस के, रसिया सामाजिक …
जिसमें सत्य सबोध रहेगा, कौन उसे सद्गुरु न कहेगा। जो विचार विचरेगा मन में, अर्थ बसेगा वही वचन में, भेद न होगा कर्म-कथन में, तीनों में रस एक बहेगा। …
श्रीगुरु गूढ़ ज्ञान के दानी। देख सर्व-संघात ब्रह्म की अटल एकता जानी, भेदों से भरपूर अविद्या भूल-भरी पहचानी। एक वस्तु में तीन गुणों की मायिक महिमा मानी, ठोस-पोल की …
हे जगदीश देव, मन मेरा- सत्य सनातन धर्म न छोड़े। सुख में तुझ को भूल न जावे, नेक न संकट में घबरावे, धीर कहाय अधीर न होवे, तमक न …