Category: नरेश मेहता
यह सोनजुही-सी चाँदनी नव नीलम पंख कुहर खोंसे मोरपंखिया चाँदनी। नीले अकास में अमलतास झर-झर गोरी छवि की कपास किसलयित गेरुआ वन पलास किसमिसी मेघ चीखा विलास मन बरफ़ …
पीले फूल कनेर के पट अंगोरते सिन्दूरी बड़री अँखियन के फूले फूल दुपेर के। दौड़ी हिरना बन-बन अंगना वोंत वनों की चोर भुर लिया समय संकेत सुनाए, नाम बजाए, …
हिम, केवल हिम- अपने शिवःरूप में हिम ही हिम अब! रग-गंध सब पिरत्याग कर भोजपत्रवत हिमाच्छादित वनस्पित से हीन धरित्री- स्वयं तपस्या। पता नहीं किस इतिहास-प्रतीक्षा में यहाँ शताब्िदयाँ …
मैं नहीं जानता क्योंकि नहीं देखा है कभी- पर, जो भी जहाँ भी लीपता होता है गोबर के घर-आँगन, जो भी जहाँ भी प्रतिदिन दुआरे बनाता होता है आटे-कुंकुम …
माधवी के नीचे बैठा था कि हठात् विशाखा हवा आयी और फूलों का एक गुच्छ मुझ पर झर उठा; माधवी का यह वृक्षत्व मुझे आकण्ठ सुगंधित कर गया । …