Category: नरेश मेहन
पेड़ से उतर कर बहुत चहकती – फुदकती थी मेरे आंगन में बच्चों की तरह कभी पूँछ हिलाती मेरे गुड़िया की तरह कभी मुंह बनाती अठखेलियाँ करती कभी पेड़ …
घर चाहे कैसा भी हो उसके एक कोने में खुलकर हंसने की जगह रखना. सूरज कितना भी दूर हो उसको घर आने का रास्ता देना. कभी कभी छत पर …
मेरे घर के पास खडा वृक्ष तेज हवा का बहाना बनाकर रोज चुमता है घर की छत को। साथ में गिरा देता है कुछ पत्ते व फूल मेरे घर …
समुद्र से भी गहरी वृक्ष से भी विशाल घोंसलों को संजोये बेठी है मां। रूई से भी नर्म लोहे से भी सख्त बादलो सी उदार पर्वत सी अडिग है …
सफल खलनायक आज हमारा नायक है। यही पैमाना हैं आज सफलता का। जो सफल है वही सत्यनिष्ठ है वही ईमानदार है। सफल-सुप्रसिद्व लोग आदर्शविहनीता के बावजूद पूजे जाते है। …
सच मानिए एक औरत मेरे भीतर हमेशा से रहती है। कभी बहुत प्यारी सी कभी बहुत क्रूर कभी कपडों से लदी-फदी कभी एक दम निर्वस्त्र। रहती है मेरे भीतर …