Category: नरेश चंद्रकर
सामूहिक प्रयासों से बने भित्ति-चित्र जैसा था वह कोना उसमें अंकित थी अधूरी छूटी आशाएँ अपूर्ण कामनाएँ पूरे न हो पा रहे मनसूबे टूटते हुए सपने नाकामयाबियों की फेहरिस्त …
उन्हें पसंद नहीं होती प्रेरक-कथाएँ उनके लिए असहनीय हो जाती हैं शौर्य-गाथाएँ वे सुनना नहीं चाहते वीरता की बातें लोरियों तक में पढ़ना नहीं चाहते वे स्नेहपूर्ण पँक्तियाँ क़ब्र …
चुपचाप कैसे चली गई चौमासे की बरसातें यह पता भी न चला बारिश की फुहारें देखकर यह अनुमान कठिन था कि ऋतांत की बारिश हो रही है यदि पहले …
नज़र उधर क्यों गई ? वह एक बुहारी थी सामान्य–सी बुहारी घर-घर में होने वाली सड़क बुहारने वालियों के हाथ में भी होने वाली केवल आकार आदमक़द था खड़े–खड़े ही …
एक आदमी को साइकल या कभी बाइक पर धीमी गति से चलते देखा है एक छोटा-सा ऐंठा हुआ कसकर बटा हुआ रस्से का टुकड़ा हाथ में जैसे वह ज़ंज़ीर …
राजनांदगाँव की नीरव शांत रात्रि कवि रामकुमार कृषक मांझी अनंत शाकिर अली पथिक तारक, शरद कोकास महेश पुनेठा, रोहित कविता-पाठ और कविताओं के दौर के बीच अंधेरे की धाक …
वे बिल्डर ठेकेदार बड़े हुकुमरान तो नहीं थे उनके हिस्से की जितनी थी साँसें, ली उन्होनें जितने झेलने थे दुख-द्वंद्व, झेल गए जितनी नापनी थीं पैरों तले की ज़मीन, …
पढ़ते हुए क़िताब खुली छोड़ कर जाता हूँ बाँच लेता है कोई पेरू खाते हुए जाता हूँ ज़रा-सा उठकर दाँत गड़ा देता है कोई बातें करते हुए बच्चों से …
यह नहीं कह रहा हूँ सिर्फ कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा उन्नीस सौ साठ के दिन जब तेज़ बारिश थी उस दिन मेरा जन्म हुआ था बल्कि बाकायदा जन्म प्रमाण-पत्र …
जितने से घाव सूखकर ठीक हो जाए जितने से अमरूद पककर पीला हो जाए जितने से माटी के पात्र में जल थिर जाए जितने से स्वेद-कण सूख जाए …जितने …
मैंने उनके कई काम निपटाए न निपटाता तो हमेशा के लिए नाराज़ रहते अब वे कहते हैं बुरा फँसा तुम्हारे निपटाए काम की वज़ह से!
इस बार गेहूँ फटकारते वक़्त कुछ अजीब आवाज़ें उठीं धान के सूखे कण चुनना ख़ून के सूखे थक्के बीनने जैसा था आटे चक्की में सुनाई दी रगड़ती हुई सूनीं …
उन्होंने कहा- तुम्हारी भाषा में उर्दू बहुत है नाम क्या है? हिन्दू नहीं हो क्या मुझे लगा इस भाषाई नंगई का जन्म ज़रूर किसी हिन्दू प्रयोगशाला में हुआ होगा!
पहले हत्या की फिर ख़ून के दाग मिटाए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बदली गवाह बदले अदालती कार्रवाई की जगहें बदलीं हत्या की तरक़ीब और उनकी अटकलें बदलीं हत्यारे का हुलिया …
एक स्त्री की छींक सुनाई दी थी कल मुझे अपने भीतर वह जुकाम से पीड़ित थी नहाकर आई थी आलू बघारे थे कुछ ज्ञात नहीं पर काम से निपटकर …
आदिवासीजन पर सभा हुई इन्तज़ाम उन्हीं का था उन्हीं के इलाक़े में शामिल वे भी थे उस भद्रजन सभा में लिख-लिखकर लाए परचे पढ़े जाते रहे ख़ूब थूक उड़ा …