Category: नरेश अग्रवाल
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तरह-तरह के विज्ञापन के कपड़ों से ढका हुआ हाथी भिक्षा नहीं माँगेगा किसी से वो चलेगा अपनी मस्त चाल से बतलाता हुआ, शहर में ये चीज़ें भी मौजूद हैं …
चित्रकार
मैं तेज़ प्रकाश की आभा से लौटकर छाया में पड़े कंकड़ पर जाता हूँ वह भी अंधकार में जीवित है उसकी कठोरता साकार हुई है इस रचना में कोमल …
डर पैदा करना
केवल उगते या डूबते हुए सूर्य को ही देखा जा सकता है नंगी आँखों से फिर उसके बाद नहीं और जानता हूँ हाथी नहीं सुनेंगे बात किन्हीं तलवारों की …
पार्क में एक दिन
इस पार्क में जमा होते जा रहे हैं लोग कोई चुपचाप निहार रहा है पौधों की हरियाली और फूलों को कोई मग्न है कुर्सी पर बैठकर प्रेम क्रीड़ा करने …
दुनिया के सारे कुएँ
मँडरा रहा है यह सूरज अपना प्रबल प्रकाश लिए मेरे घर के चारों ओर उसके प्रवेश के लिए काफ़ी है एक छोटा-सा सूराख़ ही और ज़िन्दगी में जो भी …
नए घर में प्रवेश
वर्षों से ताला बन्द था उस नए घर में कोई सुयोग नहीं बन रहा था यहाँ रहने का आज किसी शुभ हवा ने दस्तक दी और खुल गए इसके …
तुम्हारे न रहने पर
थोड़ा-थोड़ा करके सचमुच हमने पूरा खो दिया तुम्हें पछतावा है हमें तुम्हें खोते देखकर भी कुछ भी नहीं कर पाए हम अब हमारी ऑंखें सूनी हैं, जिन्हें नहीं भर …
मैं सोचता हूँ
मैं सोचता हूँ सभी का समय कीमती रहा सभी का अपना-अपना महत्व था और सभी में अच्छी संभावनाएँ थीं । थोड़ी-सी रेत से भी भवनों का निर्माण हो जाता …
क़िताब
अनगिनत सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद एक क़िताब लिखी जाती है अनगिनत सीढ़ियाँ उतरने के बाद एक क़िताब समझी जाती है ।
यहाँ की दुनिया
बच्चा अभी-अभी स्कूल से लौटा है खड़ा है किनारे पर चेहरे पर भूख की रेखाएँ और बाहों में माँ के लिए तड़प । माँ आ रही हैं झील के …
मनाली में
ये सेब के पेड़ कितने अजनबी है मेरे लिए हमेशा सेब से रहा है रिश्ता मेरा आज ये पेड़ बिल्कुल मेरे पास हाथ बढ़ाऊँ और तोड़ लूँ लेकिन इन्हें …
अनुभूतियाँ
सचमुच हमारी अनुभूतियाँ नाव के चप्पू की तरह बदल जाती हैं हर पल लगता है पानी सारे द्वार खोल रहा है ख़ुशियों के चीजें त्वरा के साथ आ रही …
पूजा के बाद
पूजा के बाद हमसे कहा गया हम विसर्जित कर दें जलते हुए दीयों को नदी के जल में ऐसा ही किया हम सबने । सैकड़ों दीये बहते हुए जा …
ख़ुशियाँ
मुझे थोड़ी सी ख़ुशियाँ मिलती हैं और मैं वापस आ जाता हूँ काम पर जबकि पानी की खुशियों से घास उभरने लगती है और नदियाँ भरी हों, तो नाव …
हक़
प्रकृति की सुंदरता पर किसी का हक़ नहीं था वो आज़ाद थी, इसलिए सुंदर थी एक ख़ूबसूरत चट्टान को तोडक़र दो नहीं बनाया जा सकता ना ही एक बकरी …
टोपी
तरह-तरह की टोपियाँ हमारे देश में सबका एक ही काम सिर ढकना नहीं एक और काम विभाजित करना लोगों को अलग-अलग समुदायों में ।
हर आने वाली मुसीबत
उसकी गतिविधियाँ असामान्य होती हैं दूर से पहचानना बहुत मुश्किल होता है या तो वह कोई बाढ़ होती है या तो कोई तूफ़ान या फिर अचानक आई गन्ध वह …
बैण्ड-बाजे वाले
आधी रात में बैण्ड-बाजे वाले लौट रहे हैं वापस अपने घर अन्धकार के पुल को पार करते जिसके एक छोर पर खड़ी है उनकी दुख-भरी ज़िन्दगी और दूसरे छोर …
यह लालटेन
सभी सोए हुए हैं केवल जाग रही है एक छोटी-सी लालटेन रत्ती भर है प्रकाश जिसका घर में पड़े अनाज जितना बचाने के लिए जिसे पहरा दे रही है …
कैसे चुका पाएँगे तुम्हारा ऋण
रात जिसने दिखाए थे हमें सुनहरे सपने किसी अजनबी प्रदेश के कैसे लौटा पाएँगे उसकी स्वर्णिम रोशनी कैसे लौटा पाएँगे चॉंद-सूरज को उनकी चमक समय की बीती हुई उम्र …
पगडंडी
जहाँ से सड़क ख़त्म होती है वहाँ से शुरू होता है यह सँकरा रास्ता बना है जो कई वर्षों में पाँवों की ठोकरें खाने के बाद, इस पर घास …