Category: नरेन्द्र शर्मा
हर लिया क्यों शैशव नादान? शुद्ध सलिल सा मेरा जीवन, दुग्ध फेन-सा था अमूल्य मन, तृष्णा का संसार नहीं था, उर रहस्य का भार नहीं था, स्नेह-सखा था, नन्दन …
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर शून्य है तेरे लिए मधुमास के नभ की डगर हिम तले जो खो गयी थीं, शीत के डर सो गयी थी …
सूरज डूब गया बल्ली भर- सागर के अथाह जल में। एक बाँस भर उठ आया है- चांद, ताड के जंगल में। अगणित उंगली खोल, ताड के पत्र, चांदनी में …
सुख सुहाग की दीव्य-ज्योति से, घर-आंगन मुस्काये, ज्योति चरण धर कर दीवाली, घर-आंगन नित आये
जब तक मन में दुर्बलता है दुख से दुख, सुख से ममता है। पर सदा न रहता जग में सुख रहता सदा न जीवन में दुख। छाया-से माया-से दोनों …
मैंने देखा, मैं जिधर चला, मेरे सँग सँग चल दिया चाँद! घर लौट चुकी थी थकी साँझ; था भारी मन दुर्बल काया, था ऊब गया बैठे बैठे मैं अपनी …
सत रंग चुनर नव रंग राग मधुर मिलन त्यौहार गगन में, मेघ सजल , बिजली में आग … सत रंग चुनर , नव रंग पाग! पावस ऋतु नारी , …
लौ लगाती गीत गाती, दीप हूँ मैं, प्रीत बाती नयनों की कामना, प्राणों की भावना पूजा की ज्योति बन कर, चरणों में मुस्कुराती आशा की पाँखुरी, श्वासों की बाँसुरी, …
उजड़ रहीं अनगिनत बस्तियाँ, मन, मेरी ही बस्ती क्या! धब्बों से मिट रहे देश जब, तो मेरी ही हस्ती क्या! बरस रहे अंगार गगन से, धरती लपटें उगल रही, …
मेरे गीत बड़े हरियाले, मैने अपने गीत, सघन वन अन्तराल से खोज निकाले मैँने इन्हे जलधि मे खोजा, जहाँ द्रवित होता फिरोज़ा मन का मधु वितरित करने को, गीत …
मेरा चंचल मन भी कैसा, पल में खिलता, मुरझा जाता! जब सुखी हुआ सुख से विह्वल, जब दु:खी हुआ दु:ख से बेकल, वह हरसिंगार के फूलों सा सुकुमार सहज …
दिखाती पहले धूप रूप की , दिखाती फ़िर मट मैली काया ! दुहरी झलक दिखा कर अपनी मोह – मुक्त कर देती माया ! असम्भाव्य भावी की आशा , पूर्ति चरम …
मधु के दिन मेरे गए बीत!(२) मैँने भी मधु के गीत रचे, मेरे मन की मधुशाला मेँ यदि होँ मेरे कुछ गीत बचे, तो उन गीतोँ के कारण ही, …
तुम्हें याद है क्या उस दिन की नए कोट के बटन होल में, हँसकर प्रिये, लगा दी थी जब वह गुलाब की लाल कली ? फिर कुछ शरमा कर, साहस …
मैं बन्दी बन्दी मधुप, और यह गुंजित मम स्नेहानुराग, संगम की गोदी में पोषित शोभित तू शतदल प्रयाग ! विधि की बाहें गंगा-यमुना तेरे सुवक्ष पर कंठहार,– लहराती आतीं गिरि-पथ …
आया था हरे भरे वन में पतझर, पर वह भी बीत चला। कोंपलें लगीं, जो लगीं नित्य बढ़नें, बढ़ती ज्यों चन्द्रकला॥ चम्पई चाँदनी भी बीती, अनुराग-भरी ऊषा आई। जब …
हुए है पराये मन हार आये मन का मरम जाने ना माने ना माने ना नैना दीवाने जाना ना जाना मन ही ना जाना चितवन का मन बनता निशाना …
जब-तब नींद उचट जाती है पर क्या नींद उचट जाने से रात किसी की कट जाती है? देख-देख दु:स्वप्न भयंकर, चौंक-चौंक उठता हूँ डरकर; पर भीतर के दु:स्वप्नों से …
तुम दुबली-पतली दीपक की लौ-सी सुन्दर मैं अंधकार मैं दुर्निवार मैं तुम्हें समेटे हूँ सौ-सौ बाहों में, मेरी ज्योति प्रखर आपुलक गात में मलय-वात मैं चिर-मिलनातु जन्मजात तुम लज्जाधीर …
पगली इन क्षीण बाहुओं में कैसे यों कस कर रख लोगी एक, एक एक क्षण को केवल थे मिले प्रणय के चपल श्वास भोली हो, समझ लिया तुमने सब …
जीवन की अंधियारी रात हो उजारी! धरती पर धरो चरण तिमिर-तम हारी परम व्योमचारी! चरण धरो, दीपंकर, जाए कट तिमिर-पाश! दिशि-दिशि में चरण धूलि छाए बन कर-प्रकाश! आओ, नक्षत्र-पुरुष, …
ज्योति कलश छलके – ४ हुए गुलाबी, लाल सुनहरे रंग दल बादल के ज्योति कलश छलके घर आंगन वन उपवन उपवन करती ज्योति अमृत के सींचन मंगल घट ढल …
भरे जंगल के बीचो बीच, न कोई आया गया जहां, चलो हम दोनों चलें वहां। जहां दिन भर महुआ पर झूल, रात को चू पड़ते हैं फूल, बांस के …
विस्तार है अपार.. प्रजा दोनो पार.. करे हाहाकार… निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ? नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई, निर्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ? …
ऐसे हैं सुख सपन हमारे बन बन कर मिट जाते जैसे बालू के घर नदी किनारे ऐसे हैं सुख सपन हमारे…. लहरें आतीं, बह-बह जातीं रेखाए बस रह-रह जातीं …