Category: नरेन्द्र जैन
यहाँ से करीब ही बहती है सूखी हुई नदी यहाँ बैठे-बैठे सुनता हूँ सूखी नदी की लहरों का शोर देखता हूँ एक नौका जो सूखी नदी की लहरों में …
बहुत सारे व्यंजनों के बाद मेज़ के अंतिम भव्य सिरे पर रखी थीं बाजरे की रोटियाँ मैंने नज़रें बचाते-बचाते कुछ रोटियाँ उठाईं एक कुल्हड़ में भरा छाछ का रायता …
विदिशा में 48 स्वर्णकार कॉलोनी अदीबों के बीच जुबान पर चढ़ा मुहावरा हो गया था उस एक ठिकाने पर नागार्जुन, क़ैफ़ भोपाली, त्रिलोचन, भवानीप्रसाद मिश्र, भाऊ समर्थ, शलभ श्रीराम …
मिले सहसा देवीलाल पाटीदार दिल्ली की एक भव्य कला-दीर्घा में वे जैसे कला-दीर्घा में नहीं थे वे भोपाल में भी नहीं थे शायद रहे हों अपनी पैतृक भूमि में …
मृत्यु आई और कल मेरी कहानी के एक पात्र को अपने संग ले गई अक्सर उसके घर के सामने से गज़रते हुए मैं उधर देख लिया करता था अर्से …
अपनी यात्रा से बेख़बर अपने आप से बेख़बर घर से पहले-पहल बाहर निकलीं अपने गंतव्य से बेख़बर सात लड़कियाँ भागती हुई ट्रेन में अंत्याक्षरी खेल रही हैं लड़कियाँ जानती …
चान्दमारी एक ख़ास जगह होती है जहाँ खड़े किये गये नकली पुतलों को गोली मारी जाती है कोई न कोई होता ही है निशाने की जद में इधर कला …
घास कमर तक ऊँची हो आई है हरी और ताज़ा जब हवा चलती है घास ज़मीन पर बिछ-बिछ जाती है वह दोबारा उठ खड़ी होती है हाथ में दराँती …
कालान्तर में वेणु गोपाल विदिशा में सपरिवार रहे आए उस एक कमरे में जो वीर हकीकतराय मार्ग से आगे जाते हुए बरईपुरा चौराहे पर ख़त्म होता था वह एक …
विदिशा में रघुनाथसिंह जब तक रहे हमने ख़ूब आबाद किया उनका घर वह एक चित्रकार का घर था उसमें प्रविष्ट होते ही लगता हम किसी चित्र में प्रविष्ट हो …