Category: मोहित द्विवेदी
अचम्भित विकट बेजुवानो़ं का चेहरा निडर है तू क्यों देखकर इनका पेहरा क्या कमी थी तुझे एक सपना था सुन्दर क्यों बनने चला इस सदी का सिकन्दर व्यथित और …
मृदंग आज मंद क्यों निश्वाश हैं रणभेरिया मन हुए अपंग क्यों सहसा चली हैं गोलियां रक्त पिपासा बढ़ी अज्ञानता सर पे चढ़ी अट्टहासों से युक्त कैसी दुर्मति की हेकड़ी …
पिछले पहर से सुन रहा था एक मधुर आवाज तेरी छनकती सी छनछनाहट का हुआ आभास अम्बर पे सबेरे का अभी पेहरा अधूरा था तेरी काया पे भी सौंदर्य …