Category: मयंक अवस्थी
वही अज़ाब वही आसरा भी जीने का वो मेरा दिल ही नहीं ज़ख्म भी है सीने का मैं बेलिबास ही शीशे के घर में रहता हूँ मुझे भी शौक …
मेरी ही धूप के टुकड़े चुरा के लाता है मेरा ही चाँद मुझे कहकशाँ दिखाता है ये किसकी प्यास से दरिया का दिल है ख़ौफज़दा हवा भी पास से …
तारों से और बात में कमतर नहीं हूँ मैं जुगनू हूँ इसलिये कि फ़लकपर नहीं हूँ मैं सदमों की बारिशें मुझे कुछ तो घुलायेंगी पुतला हूँ ख़ाक का कोई …
कभी यकीन की दुनिया में जो गये सपने उदासियों के समन्दर में खो गये सपने बरस रही थी हक़ीकत की धूप घर बाहर सहम के आँख के आँचल में …
क़ैदे- शबे- हयात बदन में गुज़ार के उड़ जाऊँगा मैं सुबह अज़ीयत उतार के इक धूप ज़िन्दगी को यूँ सहरा बना गयी आये न इस उजाड़ में मौसम बहार …
खुशफहमियों में चूर ,अदाओं के साथ – साथ भुनगे भी उड़ रहे हैं हवाओं के साथ –साथ पंडित के पास वेद लिये मौलवी क़ुरान बीमारियाँ लगी हैं दवाओं के …