Category: मनोज कुमार ‘आदि’
तक-तक करते अंखिया थक गयी सावन तुझे बुलाते हैं बचपन के झूले और अमरयाँ के चंद टिकोरे कभी गिरते, चढ़ते – चढ़ते कभी कुदक- फुदक हम जाते तक-तक करते …
तेरी अंगड़ाइयां, तेरी परछाइयाँ तेरी अंगडायिओं का पीछा , तेरी परछाइयाँ करती हैं तुम अंगड़ाइयां लेती रहो लोग परछाइयाँ तकते रहें हर कसान के ढील में परछाइयाँ परेसान होती …
सपनो कि दुनिया है अज़िब जहाँ मन के ख्वाब पुरे होते हैं बिन कहे , बिन करे कुछ मैं भी पाना चाहता हूँ बस थोड़ा सा प्यार थोड़ी खुसी …