Category: महेश कुमार कुलदीप
फिर हुआ दंगा है देखो आज मेरे देश में | फिर हुआ इंसान नंगा आज मेरे देश में || लग गए हैं लोग लिखने, खुद ही अपनी किस्मते | …
गिर गिर कर फिर संभल जाती है ज़िंदगी | हर हालात में मुस्कुराती है ज़िंदगी || मेरी हार पर जब-जब आँख रो देती है, तब मुझे फिर चलना सिखाती …
ओ ! दुर्योधन सुन सुन सुन कह दो अपने पक्ष को । दे दो फिर आज्ञा द्रौणाचार्य को रच लो फिर से चक्रव्यूह लेकिन अबके चक्र में कुछ और …
तुम भी कर लो जिंदगी, अपने सारे वार | मेरी भी ज़िद है यही, नहीं पऊँगा हार || नहीं पऊँगा हार, कर्म ही मेरा गहना | मंज़िल मेरा लक्ष्य, …
खड़ी कर दो दीवारें !! शत सहस्र कोटि खड़ी दीवारों को और ऊँचा कर दो दीवारों पर दीवारें लगा दो बिखरा दो काँटे भी राह में जितने ! खाइयाँ …
निःशब्द निस्तब्ध निरूप आहटें ! समय की घंटी प्रति प्रात: करती -टन टन टन कनकटे अक्षविहीन क्या सचमुच बहरे ! अंतर विमुख कोलाहल रच प्रहसन होते तार उलझाये प्रच्छन्न …
चापलूसी ! माना एक बला है किन्तु गज़ब की कला है जो – हर किसी को आती नहीं और कइयों की जाती नहीं | ना योग्यता ना डिग्री ना …
देखो अलग अलग कब्रिस्तान हो गए | कुछ हिन्दू और कुछ मुसलमान हो गए || दुआ एक है सबकी जुबान पर लेकिन, सुनने वाला अल्लाह औ’ भगवान हो गए …
दिल से अहम जला के मिल | कद से कद मिला के मिल || फिर से दोस्त बनेंगे सब, बीती बात भुला के मिल || रखा है जो दिल …
आजकल हर शख़्स परेशान नज़र आता है | अपने ही घर में मेहमान नज़र आता है || फैलाता है हाथ अपने, सिर्फ़ मांगने वास्ते, बड़ा तंगदिल हर इंसान नज़र …
अपना तो एक ही उसूल है | सुख-दुख दोनों कुबूल है || हिसाब इतना ज़िंदगी का, थोड़े से फूल थोड़े शूल है || जो भी मिला दिल खोल मिले, …
छुपा गई वो आँख में जो नमी थी | ये हुनर था उसका या बेबसी थी || न बजी थाली न मंगलाचार हुआ, मातम माना उत्सव बेकार हुआ, वो …
बरगद पीपल नीम की मीठी छांव भूल गए | शहरी हवा में ऐसे खोये, गाँव भूल गए || अल्हड़ बचपन सरपट गलियाँ कड़वी निबौरी खट्टी अमिया बाग-बगीचे खेत-कुएं के …
ख़्वार मतलबी ज़माना निकला | हर शख़्स बड़ा सयाना निकला || परखने जो अपनों को निकला, हर अपना मेरा बेगाना निकला || ज़ख्म नए थे मेरे लेकिन, दर्द का …
यूँ सरेआम मुझपर न अंगुल उठाओ | मेरे गुनाह का कोई सबब बताओ || ज़िंदा हूँ अभी ख़ाक में मिलना बाकी है, मेरे साथ थोड़ा तो अदब दिखाओ || …
इश्क़ में जब से हम गिरफ़्तार हो गए | पल में जमाने भर के गुनहगार हो गए || रूठना नहीं अब मनाना हमें आता है, पहले से ज़्यादा हम …
मिले तुम्हारे ख़त पुरानी दराज में | अभी तलक है ज़िंदा उसी रिवाज में || कम नहीं उदासियाँ तन्हाइयाँ मेरी, सिमट पाती नहीं मेरे तो मिजाज़ में || कदम …
एक पल के लिए भी तू मुझसे जुदा न था | ये दिल किसी और के हाथ बिका न था || सजदे किए तेरी महफ़िल में बार-बार मैंने, एक …
आँख के मोती पानी हो गए | सब किस्से कहानी हो गए || दीवार एक खिंची आँगन में, रिश्ते सब बेमानी हो गए || शहर बदले हालात बदले, वो …
उनकी महफ़िल के हम भी तलबगार है | पर मेरे हिस्से में गुनाह हज़ार है || न शिकवा कभी न गिला हमसे, इसी बात से हम सदा शर्मसार है …