Category: लईक अहमद अन्सारी
जश्न्न-ए-ईद और मेरा चाँद उदास है शिकायत स्कूल से है स्कूल से नाराज़ है आस लगा बैठा था छुट्टी में नानी घर जायेगा क्या पता था इक छुट्टी से …
तेरी सूखी हुई पलकों पे नया खुवाब रख दूं देखी नहीं जाती बेबसी हथेली पे महताब रख दूं उठता नहीं है मुझ से तेरी नवाज़िशो का बोझ सामने …
ज़ख्म जो मिले थे बीसवी सदी के बानवे साल में खिल उठे है फिर से बीसवी सदी के बारवे साल में तुमने कहा था बस एक काम है …
हुस्न जब पुर शबाब होता है वोह खुद अफ्ताब होता है खुशबू मेरे जहन से जाती नही उस कि झुल्फ मे जब गुलब होता है दिखायी ही नही देता हमे कुच भी यार के रुख पर जब नकाब होता है मस्जिदओ की रवा दारी तो कर्झ है हा मज्लूम की दुआ मे सवाब होता है
उदासियो में भी जीने के रास्ते निकाल लेते है जब कुछ सुझाई नहीं देता सिक्का उछाल लेते है ग़ुरबत इंसान को जीना भी सिखा ही देती है जब …
नशा ऐ तमररुद में जब बन्दा मगरूर हो जाता है खुद अपनी खुदी से टकरा कर चूरचूर हो जाता है बहुत मान था के यह कभी न डूबने वाला …
तुम्हरे बाद जब तुम न थे चाहत तुम्हारी थी हर एक सिम्त आहट तुम्हारी थी चोंक तो गया था दरे दिल पे उसे देख कर बदलते बदलते बदली आदत तुम्हारी …
तुम क्या गये तुम क्या गए के मैं आधा चला गया बीमार रह गया तिमार चला गया उस के सीने में मेरे कुछ राज़ थे राज़ रह गए राजदार …