Category: किशोर कुमार दास
जब आसमाँ बरसता है दिल झुम उठता है जैसे मानों सब धुल गयी हो हवा जब बहती तब खो सा जाता हूँ मानों मैं इस दुनिया में ही नहीं …
डर जाता हूँ सहम जाता हूँ मैं कहीं तुम मुझ से दूर न चली जाओ जितना गम दिया है तुम्हें कभी छोड़ न दो हमें दीवारे तो खड़ी हो …
किस भंवड़ में फस गया मैं पीसता रहता हूँ दिन व दिन जमीर जब छोट खाती है उस दर्द को मैं कैसे बयाँ करूँ पीछे ही पड़े है क्यूँ …
तन्हाई मुझे डसने लगा था अकेलेपन में कभी न जाने मुझे क्या क्या खयाल आते थे ऐसा कोई दोस्ताना भी न था जिससे मेरा हाल ए दिल बता सकु …
कड़वाहट के इतने घूट पीए है मैंने कि कुछ भी कड़वी न लगे है मुझे बदले में कुछ न मांगा जिंदगी से सिर्फ एक गुजारिश थी बल्कि फरियाद उस …
नफरत की आँधी क्यूँ बह रही है तुम्हारी दिल में? इतनी नाराजगी अच्छी नहीं सीने में आग लगाया जो मैंने क्या यह उसी का असर हैं? कितना समझाउ मैं …
मैं जो चाहू हो न पाए मैं जो मांगु मिल न पाए बंदीशे है बहुत भेद न सकु मैं उपर से ही तैरता रहता हूँ मैं रंजो गम ऐसा …
तेरी हर आरजु को पुरी करू थी ये मेरी तमन्ना, बीच में आई ये कैसी रूकावट दुश्मन है ये जमाना । दुनियाँ में है लाखों हसीनों तेरी सूरत ही …
मैं एक सपना देख रहां हूं सपना साकार होते देख रहां हूं मंजिलें हम से दूर नहीं फिलहाल अभी तो हम मशहूर नहीं राही बन के चल रहा हूं …
अजीब कशमकश में है जिंदगी क्या किया जाए नजदीकियाँ बन गयी दुरियाँ आँखों से ही नहीं बल्कि दिल से भी ओझल हो चुका हूँ मैं उसकी मुश्किल हो गया …
जिंदगी में कोई न होता किसी का आज मैं ये जाना किसी का कितना ही पेड़ों तले गिर न परू क्यूँ मैं मैं किसी को राज न आता सच …
रास्ते पे चला जा रहा था खयालातों में डूबा हुआ था हैरत हूँ मैं खुद को लेकर परेशाँ जैसे रहता अक्सर अडचने कभी भी हटती ही नहीं जज़्बात किसी …
मेरी डुबती हुई कश्ती को कोई तो पार लगाए तुफानों से घिर गया मैं न ताकत है न हिम्मत इस बेसहारे को कोई तो बचाये जी जान लगाके कोशिश …
जब कोई अपने ही लोग अपने जमीर को ललकाड़ता है…. जिस की चेहरे में हसी देखने के लिए खुद को विलीन कर देना चाहता हूँ…. वही अगर दुतकारे ये …
बाहर बारिस आ चुकी है हवा भी तेज बह रही है शायद तुफान आये ये घर गिर न परे कहीं बड़ी ही नाजुक स्थिति में है दरअसल एक कुटियाँ …
कितना सन्नाता छाया हुआ है अच्छा नहीं लगता न कुछ बोलती हो न कुछ बातें ही करती हो ये खामोशियाँ मुझको काँटने को दौड़ता है दूरियाँ क्या इतनी बढ़ …
ए हवा तू कहीं मुझे दूर ले चल फिजाए हो ऐसी जहाँ मैं खुली साँस ले सकु बहती हुई दरिया हो या झिर झिर झरने चारों तरफ जैसे हरियाली …
गम तुम्हें इतना दिया के तुम मुझे छोड़ने को मजबुर हो दर्द तुम्हें इतना मिला के मेरे पास आने को डरते हो मैं जो था हालातो का मारा क्या …
तुम मेरे जिन्दगी में आये जैसे मैं खिल उठा जब तुम्हें मैं नजदीक से जाना मैं तुम्हारा और करीब होता गया इतना करीब की बिछड़ने का डर हर रोज …
कितना करवा हुं मैं हर कोई मुझसे दूर भागता है बहुत कमी है मुझ में शायद….. तभी तो….. सालों गुजर गए अरसों बीत गए जो मैं पाना चाहता था …
वो खुशनुमा पल कैसे भुलाए भुला जाता जब एक पुत्र अपने पिता के जरुरतो को पुरा कर सकता है किसी की मुखदर्पन में संतुष्ति के झलक देख के मन …
जिन्द्गी में कुछ बनना चाहता था न बन पाया हालात बदले ही नही कुछ न कुछ सामने आ जाता है फिर भी कोशिश जारी हे हौसले छोड़े नही थक …