Category: ख़ुमार बाराबंकवी
हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए इश्क़ की मग़फ़िरत की दुआ कीजिए इस सलीक़े से उनसे गिला कीजिए जब गिला कीजिए, हँस दिया कीजिए दूसरों पर अगर तबसिरा कीजिए सामने …
हिज्र की शब है और उजाला है क्या तसव्वुर भी लुटने वाला है ग़म तो है ऐन ज़िन्दगी लेकिन ग़मगुसारों ने मार डाला है इश्क़ मज़बूर-ओ-नामुराद सही फिर भी ज़ालिम का बोल-बाला …
हाले-ग़म उन को सुनाते जाइए शर्त ये है मुस्कुराते जाइए आप को जाते न देखा जाएगा शम्मअ को पहले बुझाते जाइए शुक्रिया लुत्फ़े-मुसलसल का मगर गाहे-गाहे दिल दुखाते जाइए …
हम उन्हें वो हमें भुला बैठे दो गुनहगार ज़हर खा बैठे हाल-ऐ-ग़म कह-कह के ग़म बढ़ा बैठे तीर मारे थे तीर खा बैठे आंधियो जाओ अब आराम करो हम …
सुना है वो हमें भुलाने लगे है तो क्या हम उन्हे याद आने लगे है हटाए थे जो राह से दोस्तो की तो पत्थर मेरे घर में आने लगे …
वो हमें जिस कदर आज़माते रहे अपनी ही मुश्किलो को बढ़ाते रहे थी कमाने तो हाथो में अब यार के तीर अपनो की जानिब से आते रहे आँखे सूखी …
वो सवा याद आये भुलाने के बाद जिंदगी बढ़ गई ज़हर खाने के बाद दिल सुलगता रहा आशियाने के बाद आग ठंडी हुई इक ज़माने के बाद रौशनी के …
वो जो आए हयात याद आई भूली बिसरी सी बात याद आई कि हाल-ए-दिल उनसे कहके जब लौटे उनसे कहने की बात याद आई आपने दिन बना दिया था …
वो खफा है तो कोई बात नहीं इश्क मोहताज-ए-इल्त्फाक नहीं दिल बुझा हो अगर तो दिन भी है रात नहीं दिन हो रोशन तो रात रात नहीं दिल-ए-साकी मैं …
ऐसा नहीं कि हम से मुहब्ब्त नहीं रहीं जस्बात में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही सर में वो इंतज़ार का सौदा नहीं रहा दिल पर वो धड़कनो की …
ये मिसरा नहीं है वज़ीफा मेरा है खुदा है मुहब्बत, मुहब्बत खुदा है कहूँ किस तरह में कि वो बेवफा है मुझे उसकी मजबूरियों का पता है हवा को …
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर कुछ यूँ बसर हुई कि …
बुझ गया दिल हयात बाक़ी है छुप गया चाँद रात बाक़ी है हाले-दिल उन से कह चुके सौ बार अब भी कहने की बात बाक़ी है रात बाक़ी थी …
न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है दिया जल रहा है हवा चल रही है सुकू ही सुकू है खुशी ही खुशी है तेरा गम सलामत मुझे …
दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन याद आ गये दो बाज़ुओ की हार के दिन याद आ गये गुज़रे वो जिस तरफ से बज़ाए महक उठी सबको भरी बहार …
दिल को तस्कीन-ए-यार ले डूबी इस चमन को बहार ले डूबी अश्क को पी गए हम उनके हूज़ूर आहद-ए-इख्तियार ले डूबी इश्क के कारोबार को अक्सर गर्मिए कारोबार ले …
तेरे दर से उठकर जिधर जाऊं मैं चलूँ दो कदम और ठहर जाऊं मैं अगर तू ख़फा हो तो परवा नहीं तेरा गम ख़फा हो तो मर जाऊं मैं …
तस्वीर बनाता हूँ तस्वीर नहीं बनती एक ख़्वाब सा देखा है ताबीर नहीं बनती बेदर्द मुहब्बत का इतना-सा है अफ़साना नज़रों से मिली नज़रें मैं हो गया दीवाना अब …
झुंझलाए है लजाए है फिर मुस्कुराए है इसके दिमाग से उन्हे हम याद आए है अब जाके आह करने के आदाब आए है दुनिया समझ रही है कि हम …
ग़मे-दुनिया बहुत ईज़ारशाँ है कहाँ है ऐ ग़मे-जानाँ! कहाँ है इक आँसू कह गया सब हाल दिल का मैं समझा था ये ज़ालिम बेज़बाँ है ख़ुदा महफ़ूज़ रखे आफ़तों …
क्या हुआ हुस्न है हमसफ़र या नहीं इश्क़ मंज़िल ही मंज़िल है रस्ता नहीं ग़म छुपाने से छुप जाए ऐसा नहीं बेख़बर तूने आईना देखा नहीं दो परिंदे उड़े …
कभी शेर-ओ-नगमा बनके कभी आँसूओ में ढलके वो मुझे मिले तो लेकिन, मिले सूरते बदलके कि वफा की सख़्त राहे कि तुम्हारे पाव नाज़ुक न लो इंतकाम मुझसे मेरे …
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही जज़्बात में वो पहले-सी शिद्दत नहीं रही सर में वो इंतज़ार का सौदा नहीं रहा दिल पर वो धड़कनों की हुक़ूमत …
ऐ मौत उन्हें भुलाए ज़माने गुज़र गए आ जा कि ज़हर खाए ज़माने गुज़र गए ओ जाने वाले! आ कि तेरे इंतज़ार में रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र …
एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए …