Category: कौशलेंद्र प्रपन्न
वो कहते हैं-मत मिलो ऐसे गले,गोया कुछ छुपा से रहे हो,कुछ है जो दबा रहे हो।वो कहते हैं-मिलने से गले,मिट जाती हैं दूरियांहमारे बीच के फासले मिट जाएं,यह अच्छा …
रोप दी नदी….पास नदी नहीं थी-न तो पहाड़ पास था,सोचता रहा आंगन में नदी को लाउं,पहाड़ को रोप दूं तुलसी के बगल।पर क्या संभव था,नदी को आंगन में लाना,पहाड़ …
हवा बेचैन रहती हैसुना हैहवा बेचैन रहती है,न सोती हैन चलती है,बस ख़ामोश रहती है।शहर जाने से डरती हैन हिन्दु हैन मुस्लिम हैदक्षिण टोला जाने से डरती है।सुना हैइन …
कभी दिल थाअब नहीं रहा,बाइपास हो गया,भाव-अभाव खत्म हो गए।डल गया प्रैक्टिकल स्टंट,नहीं महसूस होता कुछ भी,एक लड़का रहा करता था सक के उस पार,क्रता इंतज़ार पहल दुपहरे,अब वहां …
शोर में डूबा शहर,कभी शोर शहर मेंतो कभी शहर में शोर।अंदर भीतर शोरशोर से भरा मन,बेचैन ढूंढ़ता रहा सकून के पल,शहर भर में शोर ही शोर,खुल गया शहर में …
तब मैं मरूंगा,मरूंगा ही,बचपन में अमर पीठा खाया तो था,खाए तो दादा भी थे,मगर वो भी नहीं बचे।बचे तो कलमुर्गी भी नहीं,बचा तो प्रद्युम्न भी नहीं,गौरी भी नहीं बची,मरते …
सिर के उपर कोई हवाई जहाज गुजरता हैतो तुम याद आते हो,जब कभी मुंह में खुजली होती हैतब तुम याद आते हो।जहां कहीं भी जन सैलाब दिखाई देता हैतब …
शब्द जब थोथे लगने लगेतुमने देह इस्तमाल किया,गुरेज नहीं किया,शब्द उथले हो गए,देह वाचाल हो गए।देह को खुलने दिया,जहां तक जा सकती थी गंध,रूप,भाव, गठन,तुमने शब्दों पर रख दिए …
वही रंग रूपवही शिखर,शिखर पर पेड़,चरणों में नदी।तुम्हारी लटों से खेलतीझाड़ियांशैवाल, चीड़,भूरे भूरे काई लगे पेड़,सड़कें बलखातीकिस मोड़ पर मुड़ जातीं।तुम नहीं बदले पहाड़बस भूगोल बदल जाता,तुम्हारी प्रकृति वही …
रस्सी को क्या मालूमरस्सी को नहीं मालूमकि वो कहां बंधेगीकिस खूंटे में गाय को थामेगी?उसे तो यह भीनहीं मालूम किकिस अलगनी मेंटंगेगी तन कर।उसे तो यह भी नहीं पताकि …
पेड़ तुम ठिगने हो गए,इमारतें लंबी हो गईंतेरी टहनियों की पत्तियां देखोमुरझा कर झरती जा रही हैं।पेड़ कब से तुम खड़े हो,घाम बरसात,सरदी की रात हो चाहेतुम तने ही …
बचपन में,बदल देता थातमाम लिंग।लड़का-लड़की,वचन भी बदल देता था,एक को बहुवचन में।मास्टर जी-सीखाते,लिंग वचन बदलोऔर झट से बदल देता था दुनिया के लिंग।अब जबबड़ा हो गया हूंएक लिंग भी …
कई बार रूलाते हैं अपने ही हस्ताक्षरकई बार हंसाते हैं,अब देखिएजब ज्वाईनिंग पत्र पर करते हैं हस्ताक्षरऔर जब…क्या ही मंजर होता है,जब अपने ही नाम डराते हैं कागजों पर …
मेरी ही कविताओं ने आज खिलाफत छेड़ दीमेरे ही सामने खड़ी हो गईं तन कर,सवाल करती हैंपूछती हैं वो अनुभव किसका थाजिसमें तुमने हमें डुबोया,पूछती हैं मेरी ही कविताएंकि …
किस खेत से लाई थी गेहूं,किस पेड़ से डालीबोलो मेरी चिड़िया रानीअपनी बातें मुझ से बोलो।किस बाग से लाई थी लकड़ीकिस नद से पानी,तिनक तिनका कहां से लाईअपनी कहो …
दक्षिणभर बैठी बेचूआ की माई-ताक रही है लगातारबरस बीतेबरसात गई,घुरना जो गयालौटा नहीं।सुना है-उसकी एक सुन्नर पतोहू है,सेवा टहल करती,उमीर गुजर रही है। Оформить и получить экспресс займ на …
चला जाता यदि हवा ही होता। हवा की तरह याद आता गरमी की शाम चिपचिपी दुपहरी की तरह। हवा की तरह किसी दिन गायब हो जाता तुम्हारे भूगोल से।
गठबंधन इन दिनांे लगा हूं समझने में रिश्तों का समीकरण रिश्तों की फुसफुसाहट गठबंधन संबंधों का। धीमे कदमों से चलता हूं रिश्तों के पायदान पर फिर कुछ आहटें कुछ …
महलों में होता था एक कोप भवन रानियां जब उदास होतीं रो आती थीं मन हो जाता था हल्का रूठ गईं रानियां तो मना आते थे राजा। घरों के …
जाने से पहले सब से माफी मांग लेना चाहता हूं उन गलतियों के लिए जो हो गए हों अनजाने बिना सोचे बिना मन में रखे किसी को दर्द पहुंचा …
पहाड़ से मिलता हूं मिलता हूं जंगल से भी। जब भी गले लगाया किसी मोटे बिरिछ को तो लगा तुम्हीं में समा गया गोया। काले थे या गोरे रंग …
तुम्हारे पास समंदर था सो मचलते रहे ताउम्र मेरे पास पहाड़ था, सो भटकता रहा मोड़ मुहानों से ताउम्र। तुम्हारे पास समंदर की लहरें थीं खेलने उलीचने को जो …
सारे षब्द क्यों छूछे लग रहे हैं क्यों सारी भावनाएं उधार सी लग रही हैं सेचता हूं तुम्हारे लिए कोई टटका षब्द दूं उसी षब्द से पुकारूं मगर सारे …
आंगन कहां है अम्मा घर भर में एक आंगन ही हुआ करता था जहां अम्मा बैठाकरती थीं अंचरा में बायन लेकर रखा करती थीं हाथ में बायन तोड़ तोड़कर …
वो वहीं खड़ा रहा शायद साल भर, शायद ताउम्र लेकिन वह हारा नहीं खड़ा ही रहा। पेड़ की तरह, लैंप पोस्ट की तरह जिसने सहा बरसात गरमी पूस की …