Category: कर्णसिंह चौहान
तुम्हारी छरहरी देह के उठते गिरते ढलानों की लुभावनी माया में युगों तक खोया हूँ सोफिया उस अक्षय को सलाम देश काल के प्रवाह मित्रों-परिचितों के ध्वंस निर्माण रचना …
सब आजाद हैं अब बदल गए हैं कानून टूटीं सीमाएं मनुष्य के आदिम राग में सब अलमस्त हैं अब नहीं निकलेंगे शांति के जुलूस नहीं मनेंगी युद्धों की बर्सियां …
मैं पुन: लौट जाऊंगा अपने अरण्य में क्या है इन नगरों में? गदराई देह लपलपाती लालसा पतंगे सा जलता तन-मन शायद अभी शेष हों वे मंत्रोच्चार आत्म के सरोकार …
फिर मिलेंगे यूं ही अचानक फिर विदा होंगे भरे हुए अनमने जब पंख फड़फड़ाएं तो आना सूरज की सीध में उड़ते जाना नए नीड़ों की खोज में उड़ती मिलेंगी …
विदेश में लावारिस मरे सबसे प्यारे मित्र की निशानियां लिए मैं लौट रहा हूँ उन नीड़ों बाजों से घिरे कुछ शावक थे डरे हुए चीखते कोई नहीं था संरक्षक, …
बाहर दूर तक पसरी है बर्फ़ की बेदाग काया प्रकृति की माया धरा पर छितरी है। पूर्णिमा के चाँद सा खिला सूरज उजली धूप खिली है चारों ओर बसंत …
हमारी तुम्हारी दोस्ती के नाम द्रुज्बा के इस घर पर मेज की दराज में छोड़े जा रहा हूँ ये डायरी इसमें दर्ज़ हैं सोफिया के आखिरी साल। यह शहर …
इस सच का सामना करके अचानक अधेड़ हो गए हैं मैं और मेरी पत्नी केवल किस्सा नहीं था पल में बालों का रंग बदल जाना निमिष में कली का …
हर जगह बहुत मदमायी है सत्ता सत्ता के चाकर जोकर, ब्रोकर उसकी कृपा से फूले सांस्कृतिक नेता बहुत इतराये हैं सब जगह छाये हैं देखो कितनी खोखली है स्वयं …
सोफिया तुमसे मिलने से पहले बहुत उदास था मैं कितने युवा वर्ष भविष्य के सपने विश्व के बसंत की कामना एक-एक कर टूटीं तुमने भी क्या दिया झूठी आशा …
अक्सर क्रांति के बारे में सोचता हूँ बर्फ़ धंसे गमबूटों परकोटों, कनटोपों में कैसी सजती हैं मूछें कारतूस, पेटी, बंदूक कितनी अच्छी लगती हैं कतारें और कवायद छूटना गोली …
कहाँ है वह धारा जिस पर छोड़े थे गहरे निशान कहां है वह सरोवर जिस पर उठाई थी उत्ताल तरंग कहाँ है वह हवा जिसमें भर गई थी सुगंध …
दोबरदेन प्रियातेली क्या है नई ख़बर? गत रात सामने आया नया तथ्य, नया शोध? क्यों जुटे हैं काम के दिन लोग यों सड़कों पर? तोचनो तका मालूम नहीं बैलीकतरनोवो से …
यह शर्माना लज्जा से लाल हो जाना डरना बिछुड़ना पछताना पास आना लहराना अमरबेलि सी लिपट जाना उफनते दरिया सी हँस मौन हो जाना शरीर की विभूती में खिल …
हमारा प्यार रेस्तरां की इस सेविका की आंखों में मुस्कुरा रहा है उसे मौका दो हमारा प्यार ज्लातना प्यासा की भट्टी में पकी सोन मछली की गंध में फैल …
घर में रहते बेघर हैं सामाजिक रस्मों बंधे दो शरीर पकाते हैं खाते हैं आते हैं जाते हैं खर्च के हिसाब पर कभी कभी बतियाते हैं
कौंन से दुख में रोती हो मारिया सब कुछ तो है तुम्हारे पास म्लादोस्त में यह बड़ा मकान इवान सा संवेदनशील पति एलेना सी प्यारी बच्ची और चार चित्रकार …
वासंती फूल सा खिला बच्चा कभी कभार सड़क पर मां से मिल जाता है हाथ हिलाता है आंखों में ढ़ूंढता भूली पहचान तुरत भाग बच्चों में खो जाता है।
पांचवें प्रेम में फिर पछताया पेचीनोव पूरब के प्रांगण का अनगिन रहस्य भरा वह मंदिर कहां है?
राह किनारे जीवन के मतलब से हारे झेल शीत के झोंके दिन भर खोज रहे वे प्यार अनदिखा देह अस्थि की अगिन सहारे
मां की उंगली थामे सड़क पर चलता बच्चा देख रहा है मां कहीं नहीं है।
समुद्र की गोद में पालती मारे सीपों के मोती सा जंगल बियाबान में आदिवासियों के गाँव में बर्गद की छाँव में शान से पसरा बयुक अदा महारानी का द्वीप …
बर्फ़ की रूई के बिछौने पर रंग-बिरंगे परकोटों, कनटोपो में लड़खड़ाते गिरते मन की मूर्तियाँ गढ़ते ढेले फैंकते हरे नीले परिधान में गुलाब से खिलते कितने प्रसन्न हैं सोफिया …
सर्द हवा में ठिठुरी काफी की आखिरी बूंद गले में उतार सड़क किनारे सोच रहा यह देश जायेगी या घर ?
घर से निकले तो धुंध ही धुंध थी चारों ओर रहस्य में लिपटा सब मन में अनंत जिज्ञासा ललक, अभिलाषा फूल सा खिला मन नई कोंपल सा विकसता तन …