Category: कन्हैयालाल नंदन
हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए मैं परिंदा हूँ उड़ने को पर चाहिए मैंने माँगी दुआएँ, दुआएँ मिली उन दुआओं का मुझ पे असर चाहिए जिसमें रहकर सुकूँ से …
अजब सी छटपटाहट, घुटन,कसकन ,है असह पीङा समझ लो साधना की अवधि पूरी है अरे घबरा न मन चुपचाप सहता जा सृजन में दर्द का होना जरूरी है
आँखों में रंगीन नज़ारे सपने बड़े-बड़े भरी धार लगता है जैसे बालू बीच खड़े । बहके हुए समंदर मन के ज्वार निकाल रहे दरकी हुई शिलाओं में खारापन डाल …
1. एक नाम अधरों पर आया अंग-अंग चंदन वन हो गया । बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ ? साँसों में सूरज उग आएँ आँखों में ऋतुपति के छंद तैरने …
गंध की पंखुरियों पर बूँदों का पहरा अंतर का तरलायित दर्द बिखर ठहरा। झिलमिल-सी ज़िंदगी है ये ठहरा जल सत्य के झरोखों से झाँक रहा छल। इंद्रधनुष-सा भविष्य दे …
अतसि नील गोटे की सरसों सी पीली-पीली पुण्य पीत साड़ी में वेष्टित नवनीत गात कोंपलों-सी रक्त आभ अधरों पर लिए हुए तार झीनी बोली में कोयल-सा गा गया। क्षण …
मैंने तुम्हें पुकारा लेकिन पास न आ जाना! किसी एक आशा में चहका मन तो तोड़ गई, एक उदासी झाडू लेकर खुशियाँ झाड़ गई। वही उदासी तुम्हें छुए यह …
तेरी याद का ले के आसरा ,मैं कहाँ-कहाँ से गुज़र गया, उसे क्या सुनाता मैं दास्ताँ, वो तो आईना देख के डर गया। मेरे ज़ेहन में कोई ख़्वाब था …
तेरा जहान बड़ा है,तमाम होगी जगह उसी में थोड़ी जगह मेरी मुकर्रर कर दे मैं ईंट गारे वाले घर का तलबगार नहीं तू मेरे नाम मुहब्बत का एक घर …
ओ पिया आग लगाए बोगनबेलिया! पूनम के आसमान में बादल छाया, मन का जैसे सारा दर्द छितराया, सिहर-सिहर उठता है जिया मेरा, ओ पिया! लहरों के दीपों में काँप …
बिन बरसे मत जाना रे बादल! बिन बरसे मत जाना। मेरा सावन रूठ गया है मुझको उसे मनाना रे बादल! बिन बरसे मत जाना! झुकी बदरिया आसमान पर मन …
बांची तो थी मैंने खण्डहरों में लिखी हुई इबारत लेकिन मुमकिन कहाँ था उतना उस वक्त ज्यो का त्यो याद रख पाना और अब लगता है कि बच नहीं …
नदी की कहानी कभी फिर सुनाना, मैं प्यासा हूँ दो घूँट पानी पिलाना। मुझे वो मिलेगा ये मुझ को यकीं है बड़ा जानलेवा है ये दरमियाना मुहबत का अंजाम …
तेरी याद का ले के आसरा, मैं कहाँ-कहाँ से गुज़र गया, उसे क्या सुनाता मैं दास्ताँ, वो तो आईना देख के डर गया। मेरे जेहन में कोई ख़्वाब था …
कुछ कुछ हवा और कुछ मेरा अपना पागलपन जो तस्वीर बनाई उसने तोड़ दिया दर्पन। जो मैं कभी नहीं था वह भी दुनिया ने पढ़ डाला जिस सूरज को …
जो कुछ तेरे नाम लिखा है, लिक्खा दाने-दाने में वह तो तुझे मिलेगा, चाहे रक्खा हो तहखाने में तूने इक फ़रियाद लगाई उसने हफ्ता भर माँगा कितने हफ्ते और …
रेशमी कंगूरों पर नर्म धूप सोयी। मौसम ने नस-नस में नागफनी बोयी! दोषों के खाते में कैसे लिख डालें गर अंगारे याचक बन पाँखुरियाँ माँग गए कच्चे रंगों से …
(एक) रूप की जब उजास लगती है ज़िन्दगी आसपास लगती है तुमसे मिलने की चाह कुछ ऐसे जैसे ख़ुशबू को प्यास लगती है। (दो) न कुछ कहना न सुनना …
पहाड़ी के चारों तरफ जतन से बिछाई हुई सुरंगों पर जब लगा दिया गया हो पलीता तो शिखर पर तनहा चढ़ते हुए इंसान को कोई फर्क नहीं पड़ता कि …
किसी नागवार गुज़रती चीज पर मेरा तड़प कर चौंक जाना, उबल कर फट पड़ना या दर्द से छटपटाना कमज़ोरी नहीं है मैं जिंदा हूं इसका घोषणापत्र है लक्षण है …
खारेपन का अहसास मुझे था पहले से पर विश्वासों का दोना सहसा बिछल गया कल , मेरा एक समंदर गहरा-गहरा सा मेरी आंखों के आगे उथला निकल गया।
हो गई क्या हमसे कोई भूल? बहके-बहके लगने लगे फूल! अपनी समझ में तो कुछ नहीं किया, अधरों पर उठ रही शिकायतें सिया, फूँक-फूँक कदम रखे, चले साथ-साथ, मगर …
एक नाम अधरों पर आया, अंग-अंग चंदन वन हो गया. बोल है कि वेद की ऋचायें सांसों में सूरज उग आयें आखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे मन …
एक सलोना झोंका भीनी-सी खुशबू का, रोज़ मेरी नींदों को दस्तक दे जाता है।एक स्वप्न-इंद्रधनुष धरती से उठता है, आसमान को समेट बाहों में लाता है फिर पूरा आसमान …
यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ! आसमान टूटा, उस पर टंके हुये ख्वाबों के सलमे-सितारे बिखरे. देखते-देखते दूब के दलों का रंग पीला पड़ गया फूलों का …