Category: कमलेश भट्ट ‘कमल’
हादसों की बात पर अल्फाज़ गूँगे हो गए मुल्क में अब हर तरफ हालात ऐसे हो गए। ठीक है, हमको नहीं मंज़िल मिली तो क्या हुआ इस बहाने …
समय के साथ भी उसने कभी तेवर नहीं बदला नदी ने रंग बी बदले‚ मगर सागर नहीं बदला न जाने कैसे दिल से कोशिशें की प्यार की हमने …
समन्दर में उतर जाते हैं जो हैं तैरने वाले किनारे पर भी डरते हैं तमाशा देखने वाले जो खुद को बेच देते हैं बहुत अच्छे हैं वे फिर …
सफलता पाँव चूमे गम का कोई भी न पल आए दुआ है हर किसी की जिन्दगी में ऐसा कल आए। ये डर पतझड़ में था अब पेड़ सूने ही …
वो शहर था, वो कोई जंगल न था रास्ता फिर भी कहीं समतल न था। सिर्फ कहने भर को थी पदयात्रा क़ाफ़िले में एक भी पैदल न था। …
वृक्ष अपने ज़ख्म आखिर किसको दिखलाते पत्तियों के सिर्फ पतझड़ तक रहे नाते। उसके हिस्से में बची केवल प्रतीक्षा ही अब शहर से गाँव को खत भी नहीं …
रोशनी है, धुन्ध भी है और थोड़ा जल भी है ये अजब मौसम है जिसमें धूप भी बादल भी है। चाहे जितना भी हरा जंगल दिखाई दे हमें उसमें …
याद आए तो आँख भर आए किन ज़मानों से हम गुज़र आए। पाँव में दम ज़रा रहे बाकी क्या पता कैसा कल सफर आए। उसने चढ़ ली …
मुश्किलों से जूझता लड़ता रहेगा आदमी हर हाल में ज़िन्दा रहेगा। मंज़िलें फिर–फिर पुकारेंगी उसे ही मंज़िलों की ओर जो बढ़ता रहेगा। आँधियों का कारवाँ निकले तो …
मन स्वयं को दूसरों पर होम कर दे माँ हमारी भावना तू व्योम कर दे ! ज्योति है तू ज्योत्सना का वास तुझमें फिर अमावस से विलग तम तोम कर …
मन नहीं बदले अगर तो सिर्फ तन से क्या ? आये दिन के कीर्तन से या भजन से क्या ? जो उजाला या तपिश कुछ भी न दे जाए वह …
भले ही मुल्क के हालात में तब्दीलियाँ कम हों किसी सूरत गरीबों की मगर अब सिसकियाँ कम हों। तरक्की ठीक है इसका ये मतलब तो नहीं लेकिन धुआँ हो, …
बेशक छोटे हों लेकिन धरती का हिस्सा हम भी हैं जैसे प्रभु की सारी रचना, वैसी रचना हम भी हैं। इतना भी आसान नहीं है पढ़ना और समझ पाना …
बहुत मुश्किल है कहना क्या सही है क्या गल़त यारो है अब तो झूठ की भी, सच की जैसी शख्स़ियत यारो। दरिन्दों को भी पहचाने तो पहचाने कोई कैसे …
बनाए घर गरीबों के, अमीरों के बहुत कम घर बने हैं राजगीरों के। उन्हें अपने-पराये से भी क्या मतलब सभी घर, घर हुआ करते फ़कीरों के। कोई …
प्यास से जो खुद़ तड़प कर मर चुकी है वह नदी तो है मगर सूखी नदी है। तोड़कर फिर से समन्दर की हिदायत हर लहर तट की तरफ …
प्यार, नफ़रत या गिला है, जानते हैं आपकी नीयत में क्या है, जानते हैं। अपनी तो कोशिश है सच ज़िन्दा रहे, बस सच बयाँ करना सज़ा है, जानते …
पेड, कटे तो छाँव कटी फिर आना छूटा चिड़ियों का आँगन आँगन रोज, फुदकना गाना छूटा चिड़ियों का आँख जहाँ तक देख रही है चारों ओर बिछी बारूद …
पिंजरें में कैद पंछी कितनी उड़ान लाते अपने परों में कैसे वो आसमान लाते। काग़ज़ पे लिखने भर से खुशहालियाँ जो आतीं अपनी ग़ज़ल में हम भी हँसता सिवान …
पास रक्खेगी नहीं सब कुछ लुटायेगी नदी शंख शीपी रेत पानी जो भी लाएगी नदी आज है कल को कहीं यदि सूख जाएगी नदी होठ छूने को किसी …
पत्थरों का शहर‚ पत्थरों की गली पत्थरों की यहाँ नस्ल फूली फली आप थे आदमी‚ आप हैं आदमी बात यह भी बहूत पत्थरों को खली एक शीशा …
नाउमीदी में भी गुल अक्सर खिले उम्मीद के जिसने चाहे, रास्ते उसको मिले उम्मीद के। जोड़ने वाली कोई क़ाबिल नज़र ही चाहिए हर तरफ बिखरे पड़े हैं सिलसिले …
देह के रहते ज़माने की कई बीमारियाँ भी हैं आदमी होने की लेकिन हममें कुछ खुद्दारियाँ भी हैं। कोई भी खुद्दार अपनी रूह का सौदा नहीं करता और करता …
दूध को बस दूध ही, पानी को पानी लिख सके सिर्फ कुछ ही वक़्त की असली कहानी लिख सके। झूठ है जिसका शगल, दामन लहू से तर-ब-तर कौन …
टूटते भी हैं‚ मगर देखे भी जाते हैं स्वप्न से रिश्ते कहाँ हम तोड़ पाते हैं। मंज़िलें खुद आज़माती हैं हमें फिर फिर मंज़िलों को हम भी फिर …