Category: जॉन एलिया
फारेहा निगारिना, तुमने मुझको लिखा है “मेरे ख़त जला दीजे ! मुझको फ़िक्र रहती है ! आप उन्हें गँवा दीजे ! आपका कोई साथी, देख ले तो क्या होगा ! देखिये! मैं कहती …
रूह प्यासी कहाँ से आती है ये उदासी कहाँ से आती है दिल है शब दो का तो ऐ उम्मीद तू निदासी कहाँ से आती है शौक में ऐशे …
हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई एक ही हादसा तो है और वो यह के आज तक बात नहीं कही …
हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम, हर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं, तुम कौन हो ये ख़ुद भी नहीं जानती हो तुम, मैं …
हमारे शौक के आंसू दो, खुशहाल होने तक तुम्हारे आरज़ू केसो का सौदा हो चुका होगा अब ये शोर-ए-हाव हूँ सुना है सारबानो ने वो पागल काफिले की ज़िद …
हम तो जैसे यहाँ के थे ही नहीं| धूप थे सायबाँ के थे ही नहीं| रास्ते कारवाँ के साथ रहे, मर्हले कारवाँ के थे ही नहीं| अब हमारा मकान …
हम के ए दिल सुखन सरापा थे हम लबो पे नहीं रहे आबाद जाने क्या वाकया हुआ क्यू लोग अपने अन्दर नहीं रहे आबाद शहर-ए-दिन मे अज्ब मुहल्ले थे …
सर येह फोड़िए अब नदामत में नीन्द आने लगी है फुरकत में हैं दलीलें तेरे खिलाफ मगर सोचता हूँ तेरी हिमायत में इश्क को दरम्यान ना लाओ के मैं …
यह गम क्या दिल की आदत है? नहीं तो किसी से कुछ शिकायत है? नहीं तो है वो इक ख्वाब-ए-बे ताबीर इसको भुला देने की नीयत है? नहीं तो …
मेरी अक्ल-ओ-होश की सब आसाईशें तुमने सांचे में ज़ुनूं के ढाल दी कर लिया था मैंने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क तुमने फिर बाँहें गले में डाल दी यूँ तो अपने कासिदाने-दिल के …
महक उठा है आँगन इस ख़बर से वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे मैं इस दीवार पर …
बेदिली! क्या यूँ ही दिन गुजर जायेंगे सिर्फ़ ज़िन्दा रहे हम तो मर जायेंगे ये खराब आतियाने, खिरद बाख्ता सुबह होते ही सब काम पर जायेंगे कितने दिलकश हो …
दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-जफ़ा नहीं किया ख़ुद को हलाक कर लिया ख़ुद को फ़िदा नहीं किया कैसे कहें के तुझ को भी हमसे है वास्ता कोई …
तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ यह कैसी तन्हाई है तेरे साथ तेरी याद आई, क्या तू सचमुच आई है शायद वो दिन पहला दिन था पलकें …
तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू औए इतने ही बेमुरव्वत हो तुम हो पहलू में …
तुम जिस ज़मीन पर हो मैं उस का ख़ुदा नहीं बस सर- ब-सर अज़ीयत-ओ-आज़ार ही रहो बेज़ार हो गई हो बहुत ज़िन्दगी से तुम जब बस में कुछ नहीं …
चार सू मेहरबाँ है चौराहा अजनबी शहर अजनबी बाज़ार मेरी तहवील में हैं समेटे चार कोई रास्ता कहीं तो जाता है चार सू मेहरबाँ है चौराहा
ख़ुद से हम इक नफ़स हिले भी कहाँ| उस को ढूँढें तो वो मिले भी कहाँ| ख़ेमा-ख़ेमा गुज़ार ले ये शब, सुबह-दम ये क़ाफिले भी कहाँ| अब त’मुल न …
ख़ामोशी कह रही है, कान में क्या आ रहा है मेरे, गुमान में क्या अब मुझे कोई, टोकता भी नहीं यही होता है, खानदान में क्या बोलते क्यों नहीं, …
उसके पहलू से लग के चलते हैं हम कहाँ टालने से टलते हैं मैं उसी तरह तो बहलता हूँ यारों और जिस तरह बहलते हैं वोह है जान अब …
कोई हालत नहीं ये हालत है ये तो आशोभना सूरत है अन्जुमन में ये मेरी खामोशी गुर्दबारी नहीं है वहशत है तुझ से ये गाह-गाह का शिकवा जब तलक …
किसी लिबास की ख़ुशबू जब उड़ के आती है तेरे बदन की जुदाई बहुत सताती है तेरे बगैर मुझे चैन कैसे पड़ता है मेरे बगैर तुझे नींद कैसे आती …
कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे| जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे| उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा, यूँ …
एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं सब के दिल से उतर गया हूँ मैं कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ सुन रहा हूँ के घर गया हूँ …
एक ही मुश्दा सुभो लाती है ज़हन में धूप फैल जाती है सोचता हूँ के तेरी याद आखिर अब किसे रात भर जगाती है फर्श पर कागज़ो से फिरते …