Category: जिगर मुरादाबादी
कहाँ से बढ़के पहुँचे हैं कहाँ तक इल्म-ओ-फ़न साक़ी मगर आसूदा इन्साँ का न तन साक़ी न मन साक़ी ये सुनता हूँ कि प्यासी है बहुत ख़ाक-ए-वतन साक़ी ख़ुदा हाफ़िज़ चला …
साक़ी पर इल्ज़ाम न आये चाहे तुझ तक जाम न आये तेरे सिवा जो की हो मुहब्बत मेरी जवानी काम न आये जिन के लिये मर भी गये हम …
साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया बेकैफ़ियों के कैफ़ से घबरा के पी गया तौबा को तोड़-ताड़ …
शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फ़र्माता हूँ मैं रूह बन कर ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं जैसे …
वो काफ़िर आशना ना-आश्ना यूँ भी है और यूँ भी हमारी इब्तदा ता-इंतहा यूँ भी है और यूँ भी त’अज्जुब क्या अगर रस्म-ए-वफ़ा यूँ भी है और यूँ भी …
वो अदाए-दिलबरी हो कि नवाए-आशिक़ाना। जो दिलों को फ़तह कर ले, वही फ़ातहेज़माना॥ कभी हुस्न की तबीयत न बदल सका ज़माना। वही नाज़े-बेनियाज़ी वही शाने-ख़ुसरवाना॥ मैं हूँ उस मुक़ाम …
कोई ये कह दे गुलशन गुलशन लाख बलाये एक नशेमन कामिल रहबर क़ातिल रहज़न दिल सा दोस्त न दिल सा दुश्मन फूल खिले हैं गुलशन गुलशन लेकिन अपना अपना …
ये हुजूमे-ग़म ये अन्दोहो-मुसीबत देखकर अपनी हालत देखता हूँ उसकी हालत देखकर शब्दार्थ: ↑ दुखों का झुण्ड ↑ दुख और व्यथा
ये सब्जमंद-ए-चमन है जो लहलहा ना सके वो गुल है ज़ख्म-ए-बहाराँ जो मुस्कुरा ना सके ये आदमी है वो परवाना, सम-ए-दानिस्ता जो रौशनी में रहे, रौशनी को पा ना …
यादे-जानाँ भी अजब रूह-फ़ज़ा आती है साँस लेता हूँ तो जन्नत की हवा आती है मर्गे-नाकामे-मोहब्बतमेरी तक़्सीरमुआफ़ ज़ीस्त बन-बन के मेरे हक़ में क़ज़ा आती है नहीं मालूम वो ख़ुद हैं कि मोहब्बत …
आई जब उनकी याद तो आती चली गई हर नक़्श-ए-मासिवा को मिटाती चली गई हर मन्ज़र-ए-जमाल दिखाती चली गई जैसे उन्हीं को सामने लाती चली गई हर वाक़या क़रीबतर …
हाँ किस को है मयस्सर ये काम कर गुज़रना इक बाँकपन से जीना इक बाँकपन से मरना दरिया की ज़िन्दगी पर सदक़े हज़ार जानें मुझ को नहीं गवारा साहिल …
हर सू1 दिखाई देते हैं वो जलवागर2 मुझे क्या-क्या फरेब3 देती है मेरी नज़र4 मुझे डाला है बेखुदी5 ने अजब राह पर मुझे आँखें हैं और कुछ नहीं आता नज़र मुझे दिल ले के …
हर दम दुआएँ देना हर लम्हा आहें भरना इन का भी काम करना अपना भी काम करना याँ किस को है मय्यसर ये काम कर गुज़रना एक बाँकपन पे …
हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं बेफ़ायदा अलम नहीं, बेकार ग़म नहीं तौफ़ीक़ दे ख़ुदा तो ये ने’आमत भी …
सोज़ में भी वही इक नग़्मा है जो साज़ में है फ़र्क़ नज़दीक़ की और दूर की आवाज़ में है ये सबब है कि तड़प सीना-ए-हर-साज़ में है मेरी आवाज़ भी …
वो अदाए-दिलबरी हो कि नवाए-आशिक़ाना। जो दिलों को फ़तह कर ले, वही फ़ातहेज़माना॥ कभी हुस्न की तबीयत न बदल सका ज़माना। वही नाज़े-बेनियाज़ी वही शाने-ख़ुसरवाना॥ मैं हूँ उस मुक़ाम …
निगाहों से छुप कर कहाँ जाइएगा जहाँ जाइएगा, हमें पाइएगा मिटा कर हमें आप पछताइएगा कमी कोई महसूस फ़र्माइएगा नहीं खेल नासेह! जुनूँ की हक़ीक़त समझ लीजिए तो समझाइएगा …
निगाहों का मर्कज़ बना जा रहा हूँ महब्बत के हाथों लुटा जा रहा हूँ मैं क़तरा हूँ लेकिन ब-आग़ोशे-दरिया अज़ल से अबद तक बहा जा रहा हूँ वही हुस्न जिसके हैं ये …
न ताबे-मस्ती न होशे-हस्ती कि शुक्रे-ने’मतअदा करेंगे ख़िज़ाँ में जब है ये अपना आलम बहार आई तो क्या करेंगे हर एक ग़म को फ़रोग़ देकर यहाँ तक आरस्ता करेंगे वही जो रहते हैं दूर हमसे …
न जाँ दिल बनेगी न दिल जान होगा ग़मे-इश्क़ ख़ुद अपना उन्वान होगा ठहर ऐ दिले-दर्दमंदे-मोहब्बत तसव्वुर किसी का परेशान होगा मेरे दिल में भी इक वो सूरत है …
दुनिया के सितम याद ना अपनी हि वफ़ा याद अब मुझ को नहीं कुछ भी मुहब्बत के सिवा याद मैं शिक्वाबलब था मुझे ये भी न रहा याद शायद …
दिले हजीं की तमन्ना दिले-हजीं में रही ये जिस ज़मीं की थी दुनिया उसी ज़मीं में रही हिजाब बन न गईं हों हक़ीक़तें बाहम कि बेसबब तो कशाकश न कुफ़्रो-दीं में रही सरे-नियाज़ न जब तक किसी …
दिल में तुम हो नज़अ का हंगाम है कुछ सहर का वक़्त है कुछ शाम है इश्क़ ही ख़ुद इश्क़ का इनआम है वाह क्या आग़ाज़ क्या अंजाम है दर्द-ओ-ग़म दिल की तबीयत …
दिल में किसी के राह किये जा रहा हूँ मैं कितना हसीं गुनाह किये जा रहा हूँ मैं दुनिया-ए-दिल तबाह किये जा रहा हूँ मैं सर्फ़-ए-निगाह-ओ-आह किये जा रहा …