Category: जीवन शुक्ल
माँग रहा लेकर कटोरा भटक गई किस्मत का सावधान छोरा। ढकी मुँदी आँखों के कजरारे द्वार इकतारी काया के कर का प्रस्तार टूट नहीं पाता है अम्बर का धीर …
तुम तो रूठे थे चित्र और रूठ गया जहा सहा संयम से नाता था टूट गया उर्मिल हो उठी पीर रोकेगा कौन मरुद तिरते से पातों को छाला यह …
कोहरे की आँख में मील का धुआँ फसलें मजबूरी की क्वाटर के पास हरे हरे घावों की आस पास घास भारी से आँगन में रोग का कुआँ ।
आषाढ़ तो आया घास नहीं हो उठी झरबेरी हरी हरी। हथेलियाँ पसार दीं शूलों पर वार दीं टुकड़े हो टूट पड़ा आसमान धरती पर घूँघट में धूल की कल …