Category: जनक देसाई
यह जलन.. है सौगात, पूनम की हो जैसे रात, तू है अँधेरे में दिये की तरह, क्या हुआ अगर अभी है रात? जनक म देसाई
कलम से जो टपकते है, उन सोचों कों कविता न समज़ना, शब्दोंके सहारे बहता हूँ मैं; मेरे मन, मेरे दिल, मेरी भावनाओं को एक शरीर दे रहा हूँ, ताकि …
डूब गया हूँ इतना अब मैं, की मैं तैर रहा हूँ दोस्ती की गहराईओँ का पता फिर भी न मिला | जनक
है नूर ही ऐसा तेरी नज़र का, जैसे उजाला हो तू जहाँ भी है, हरपल, हरदिन हमें, इसी कारण तेरा इन्तज़ार रहता ही है | जनक
प्यार इतना न करो के दिल मेरा मचल जाए रास्त में छोड़ दो शायद, हम तुम्हे भूल भी पाए मुलाक़ात में रखो कुछ दुरिया , धड़कने ऐसे भी तेज …
बेलुत्फ़ हो गई अब, यह जिंदगी पीते पीते अब कैसे जी पाऊंगा मैं शराब के बगैर शायद मेरे नशीब तेरी दोस्ती का जाम होता गुजर जाती यह जिंदगी, बस …
तू छुपी है कहां सनम? तू यादगार यहां महरूमी किस्मतका मारा, बेक़ारार यहां फासले कितने! खामोशी कैसी ! रहम कर बीती बातों की यादों से तेरा इंतज़ार यहां माहोल …
जब जब भी तेरी याद मनमे उभर आई मेरे मन खुशियाँ ही खुशियाँ भर आई एक हसीं माहोल की तरह तू चारो और है हर झोंके के साथ तेरी …
भीतर देख रे प्राणी, अंदर देख अंधेर है भीतर , फिरसे देख क्यूँ कोस रहा है देश परदेश तुने ही तो लिखा अपना लेख जहाँ पे तो लाली छाई …