Category: जयप्रकाश मानस
यहाँ भी – सूरज उगता है पर नगरनिगम के मलबे के ढेर से चिड़िया गाती है पर मोबाईल के रिंगटोन्स में घास की नोक पर थिरकता हुआ ओस भी …
अपने अँधेरे में पड़ा था चुपचाप आदमी उसके पास पहुँचा जाग उठा वह नहा उठा रोशनी से आदमी भी सिर्फ़ इतना ही नहीं नहा उठी सारी दुनिया उसकी रोशनी …
धरती का वैभव ऊँचाई आकाश की सूरज की चमक या हो चंदा की चाँदनी पूरी भलमनसाहत सारा-का-सारा पुण्य समूची पृथ्वी पलड़े में चाहे रख दो सावजी डोलेगा नहीं काँटा …
अनदेखे ठिकाने के लिए डेरा उसालकर जाने से पहले समेटना है कुछ गुनगुनाते झूमते गाते आदिवासी पेड़ पेड़ की समुद्री छाँव छाँव में सुस्ताते कुछ अपने जैसे ही लोग …
होना इफ़रात जगह ढेर सारे असबाब के लिए आदमी के लिए नहीं के बरोबर घर में
अच्छे मनुष्य बचे रहेंगे उनके हिस्से की दुनिया से चले जाने के बाद भी लोककथाओं की असमाप्त दुनिया के राजकुमार की तरह बहुत अच्छे मनुष्य बचे रहेंगे उनके हिस्से …
हम बहुत पहले से हैं बहुत बाद तक हमीं झिलमिलाते रहेंगे पहली बारिश से उमगती गंध की तरह हमारी उपस्थिति है भली-भाँति याद है हमें चंदा को खिलौना बनाकर …
जूतों के नीचे भी आ सकती है दुर्लंघ्य पर्वत की मदांध चोटी परंतु इसके लिए ज़रूरी है- पहाड़ों के भूगोल से कहीं ज़्यादा हौसलों का इतिहास पढ़ना
1-सफ़र अनदेखे ठिकाने के लिए डेरा उसालकर जाने से पहले समेटना है कुछ गुनगुनाते झूमते गाते आदिवासी पेड़ पेड़ की समुद्री छाँव छाँव में सुस्ताते कुछ अपने जैसे ही …
आँधी तूफ़ान वर्षा शीत घाम हर हाल में सिर्फ़ वही रहे अडिग अविचल
कोई दलील नहीं कोई अपील नहीं कोई गवाह नहीं कोई वक़ील नहीं वहाँ सिर्फ़ मौत है कोई इंसान नहीं कोई ईमान नहीं कोई पहचान नहीं कोई विहान नहीं वहाँ …
धूप की मंशाएँ भाँपकर इधर-उधर, आगे-पीछे, दाएँ-बाएँ जगह बदलते रहते दरअसल पेड़ से उन्हें कोई लगाव नहीं होता
धूप का पर्वत बातों ही बातों में कट जाता चारों दिशाओं से आकर एक लय में खिलखिलाने लगते कई झरने नये पुराने ठीक इसी जगह जी हाँ, ठीक इसी …
कोई नहीं है बैठे-ठाले कीड़े भी सड़े-गले पत्तों को चर रहे हैं कुछ कोसा बुन रहे हैं केचुएँ आषाढ़ आने से पहले उलट-पलट देना चाहते हैं ज़मीन …
नितांत एकाकी नदी हूँ जब कोई न था, जब कुछ भी नहीं रहेगा अंत के बाद भी बहता रहूँगा वह उस दुनिया का सबसे बड़ा भ्रम ही है जिन्हें …
आना होगा जब उसे आना होगा जब उसे रोक नहीं सकती भूखी शेरनी – सी दहाड़ती नदी उलझा नहीं सकते जादुई और तिलिस्मी जंगल झुका नहीं सकते रसातल को …
अन्न-पूजा जो खेत नहीं जोत सकते जो बीज नहीं बो सकते जो रतजगा नहीं कर सकते जो खलिहान की उदासी नहीं देख सकते उनकी थालियों के इर्द-गिर्द अगर महक …
कुएँ में पानी नहीं था पर वह था लबालब जब तक वह रहा पानी भरा रहा गाँव भर में उसके करीब जाओ तो मिट्टी की मीठी बोली सुनाई देती …