Category: जयकृष्ण राय तुषार
फ़ोन पर बातें न करना चिट्ठियाँ लिखना । हो गया मुश्किल शहर में डाकिया दिखना । चिट्ठियों में लिखे अक्षर मुश्किलों में काम आते हैं, हम कभी रखते किताबों …
शरद में ठिठुरा हुआ मौसम लगा होने गुलाबी | हो गया अपना इलाहाबाद पेरिस ,अबू धाबी | देह से उतरे गुलाबी – कत्थई ,नीले पुलोवर , गुनगुनाने लगे घंटों …
रातें होतीं कोसोवो-सी दिन लगते हैं वियतनाम से । डर लगता है अब प्रणाम से । हवा बह रही चिन्गारी-सी दैत्य सरीखे हँसते टापू, सड़कों पर जुलूस निकले हैं …
नींद नहीं टूटे तो देह गुदगुदाना | सूरज कल भोर में जगाना | फूलों में रंग भरे खुशबू हो देह धरे , मौसम के होठों से रोज सगुन गीत …
सुलगते सवाल कई छोड़ गया मौसम | मानसून रिश्तों को तोड़ गया मौसम | धुआँ -धुँआ चेहरे हैं धान -पान खेतों के , नदियों में ढूह खड़े हंसते हैं …
जाने क्या होता इन प्यार भरी बातों में? रिश्ते बन जाते हैं चन्द मुलाकातों में । मौसम कोई हो हम अनायास गाते हैं, बंजारे होठ मधुर बाँसुरी बजाते हैं, …
इस मौसम की बात न पूछो लोग हुए बेताल से । भोर नहाई हवा लौटती पुरइन ओढ़े ताल से । चप्पा-चप्पा सजा-धजा है सँवरा निखरा है जाफ़रान की ख़ुशबू …
अक्षरों में खिले फूलों-सी रोज़ साँसों में महकती है । ख़्वाब में आकर मुंडेरों पर एक चिड़िया-सी चहकती है । बिना जाने और पहचाने साथ गीतों के सफ़र में …
हमें चाँदनी – चौक ,मुम्बई और नहीं भोपाल चाहिए | हम किसान बुनकर के वंशज हमको रोटी -दाल चाहिए | हथकरघों से सपने बुनकर हम कबीर के पद गाएंगे …
यह सब कैसे हो जाता है ? यह सब कैसे हो जाता है ? सिर्फ़ तुम्हारे होने भर से | हम अच्छी कविता लिखते हैं , दरपन में सुन्दर दिखते …
मेरी ही यादों में खोई अक्सर तुम पागल होती हो माँ तुम गंगा-जल होती हो ! माँ तुम गंगा-जल होती हो ! जीवन भर दुःख के पहाड़ पर तुम पीती आँसू …
भोर की पहली किरन के साथ सूर्यमुखियों की तरह खिलना । फिर इन्हीं मेरून होठों में वादियों में कल हमें मिलना । पत्थरों पर बैठकर चुपचाप हम सुनहरे वक़्त …
शीत का मौसम ठिठुरती काँपती है | बड़े होने तक – हमें माँ ढांपती है | हरा है स्वेटर मगर मैरून बुनती है , नज़र धुँधली है मगर माँ …
तुम्हें देखा भूल बैठा मैं काव्य के सारे सधे उपमान | ओ अपरिचित ! लिख रहा तुमको रूप का सबसे बड़ा प्रतिमान | देख तुमको खिलखिलाते फूल जाग उठती शांत …
भारत माता तेरी क्या तस्वीर लिखूं ? दिल्ली या गुजरात कि मैं कश्मीर लिखूं | मुखिया का ईमान मुखौटों वाला है , परजा के मुँह गोदरेज का ताला है , …
आँख मलते उठा सोया चाँद बादलों के बीच में रस्ते हुए । जब कभी सोचा सुनाऊँ गीत तुम्हें देखा काम में फँसते हुए । अष्टगंधा हो गई छूकर तुम्हें …
जब तक न प्रलय हो धरती पर जब तक सूरज पवमान रहे | जनगण मन और तिरंगे की आभा में हिन्दुस्तान रहे | चरणों में हिन्द महासागर सीने में …
इस मौसम में आज दिखा है पहला-पहला बौर आम का। गाल गुलाबी हुए धूप के इन्द्रधनुष सा रंग शाम का। साँस-साँस में महक इतर सी रंग-बिरंगे फूल खिल रहे, …
बीत रहे हैं दिन सतरंगी केवल ख़्वाबों में | चलो मुश्किलों का हल ढूँढें खुली किताबों में | इन्हीं किताबों में जन- गण -मन तुलसी की चौपाई , इनमें …
किसको गीत सुनाएं मौसम बहरा है | असमंजस की छत के नीचे रिश्ते -नाते हैं , घुटन -बेबसी ओढ़े हम सब हँसते -गाते हैं , पल -पल अपने ऊपर …
कब लौटोगी कथा सुनाने ओ सिंदूरी शाम | रीत गयी है गन्ध संदली शोर हवाओं में , चुटकी भर चांदनी नहीं है रात दिशाओं में , टूट रहे आदमकद …
ओ मेरे दिनमान निकलना ! नए साल में नई सुबह ले ओ मेरे दिनमान निकलना ! अगर राह में मिले बनारस खाकर मघई पान निकलना | संगम पर आने से पहले …
सन ग्यारह जा दरिया में डूबे तेरा सफीना उम्मीदों पर खरा न उतरा होता गया कमीना | सन ग्यारह जा दरिया में , डूबे तेरा सफीना | जाते -जाते …
इस सुनहरी धूप में कुछ देर बैठा कीजिए | आज मेरे हाथ की ये चाय ताजा पीजिए | भोर में है आपका रूटीन चिड़ियों की तरह , आप कब …
होली में आना जी आना चाहे जो रंग लिए आना | भींगेगी देह मगर याद रहे मन को भी रंग से सजाना | वर्षों से बर्फ जमी प्रीति को …