Category: जगदीश रावतानी आनंदम
मेरे पास था एक शक्ति शाली गुलेल दूर तक पत्थर फेंकने का खेल रहा था खेल खेलते खेलते महारत हासिल कर बहुत मैं ऐंठा प्रकृति से हुआ दण्डित जब …
बचपन में मैं रोता था खूब चिल्ला-चिल्ला कर रोता था माँ-बाप, चाचा-चची, भाई-बहन सबका खूब प्यार हासिल करता था हाँ, मैं जानबूझ कर रोता था अब भी मैं रोता …
पचास पार कर लिए अब भी इंतज़ार है मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है गुरुर टूटने पे ही समझ सका सच्चाई को जो है तो बस खुदा …
नाम में अक्सर मजहब का ज़िक्र होता है मेरा नाम जगदीश यानी हिन्दू उसका नाम अशरफ था, ज़ाहिरन मुसलमान था मैंने आदाब कहा उसने नमस्कार हम दोनों के लिबाज़ …
दिल अगर फूल सा नहीं होता यूँ किसी ने छला नहीं होता था ये बेहतर कि कत्ल कर देती रोते रोते मरा नहीं होता दिल में रहते है दिलरुबाओं …
जिंदगी को सजा नहीं पाया बोझ इसका उठा नहीं पाया खूब चश्मे बदल के देख लिए तीरगी को हटा नहीं पाया प्यार का मैं सबूत क्या देता चीर कर …
गो मैं तेरे जहाँ में ख़ुशी खोजता रहा लेकिन ग़मों-अलम से सदा आशना रहा हर कोई आरजू में कि छू ले वो आसमाँ इक दूसरे के पंख मगर नोंचता …
कुदरत का ये करिशमा भी क्या बेमिसाल है चेहरे सफेद काले लहू सब का लाल है हिन्दू से हो सके न मुस्लमां की एकता दूरी बनी रहे ये सियासत …